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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - अनुयोगवन्द्रिका टीका. सू० ६२ सचित्तव्योपक्रमनिरूपणम् छाया--अथ कोऽसौ सचित्तो गोप कमः १ सचित्तो द्रव्योपक्रमस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तपथा-द्विपदचतुष्पदो पदः । एकैकः पुनहि विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथापरिकर्मणि प व तुविनाशे च ॥त्र ६२॥ अब सत्रकार सचित द्रव्योपक्रम का स्वरूप प्रकट करते हैं से किं तं सचित्ते दमोरक्कमे" इत्यादि । ।सत्र ६२॥ शब्दार्थ--(से कि तं सचित्ते दयोवकमे) हे भदन्त ! सचित्त द्रव्यो. पक्रम का क्या स्वरूप है? (सचित्त दन्दोवस्कमे तिविहे पणत्त) उत्तर-सचित्त द्रव्योपक्रम ३तीन प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) जैसे (दुपए चउपपए अपए) द्विपद, चतुष् द और आद। इन में से नट नर्तक आदिरूप द्विपद सचित्त द्रव्यो पक्रम है। हस्ती अश्व आदिरूप चतुष्पद सचिन द्रव्योपक्रम है। तथा आम्रादिकृवरूप अद सचित्त द्रन्योरक्रम है। (पकिके पुण दुविहे पण्णत्ते) इनमे भी एक एक दो २ प्रकारका कहा गया है। (तजहा) जैसे-(परिक्कमे य यत्युविणासे य) पकिर्म में और व तु विनाश में अवस्थित वस्तु में गुण विशेष का आधन व रमा परिकर्म है। इस परिकर्म में परिकर्म विषयवाला द्रव्यो. पकार होता है। द्विपदवाले नट-नतंक आदि जन घृत आदि द्रव्य के उपयोग से जो अपने बल आदि की वृद्धि करते हैं अथवा और अनेक साधनों से कर्ण एवं स्कन्धों को बढाते हैं वह रिकर्म को आश्रित करके सचित्त द्रव्यो હવે સત્રકાર સચિન દ્રપકમના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરે છે— - "से कि त सचित दव्वोत्रक्कमें" त्याह Ava'-(से कि त सचित्ते दबोवकमे ?) शिष्य गुरुने वो प्रश्न पूछे છે કે હે ભગવન્! સચિત્ત દ્રવ્યપકમનું કેવું સ્વરૂપ છે? . उत्तर-(सचित्ते दव्वोवक्कमे तिविहे पण्णत्त) सथित्त ०.५भत्र र हो 2. (तंजहा) ते प्रा। नीय प्रमाणे छ.. (दुपए, चउपए, अपए) (१) ६५६, (२) यतु.५६ अने (3) 446 12, नत: આદિરૂપ દ્વિપદ સચિત્ત દ્રવ્ય પક્રમ છે, ગજ, અશ્વ આદિરૂપ ચતુષ્પદ સચિત્ત દ્રપક્રમ છે, તથા આઝાદિ વૃક્ષરૂપ અપદ સચિત્ત દ્રવ્યપક્રમ છે. एकिके पुग दुविहे पण्णत्ते) से प्रत्ये:ना ५५ २ ४ा छे. (तंजहा) म (परिकमे य वत्थुविणासे य) (१) पश्मिना माश्रितरीन शुविशेष माधान કરવું તેનું નામ પરિકમ છે. આ પરિકર્મમાં પરિકર્મવિષયવાળે પમ છે. દ્વિપદવાળા (બે પગવાળા) નટ, નર્તક આદિજન ધી આદિ દ્રવ્યના ઉપયોગથી પિતાના બળ આદિની જે વૃદ્ધિ કરે છે, અથવા બીજા અનેક સાધનથી કર્યું અને જેને - For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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