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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अनुयोगचन्द्रिका टीका.सू० ४५ स्कन्धाधिकारनिरूपणम् इत्थं श्रुताधिकारमुक्त्वा सम्पति-'खधं निक्खिविस्सामि' इति कथनानुसारेण स्कन्धाधिकार उच्यते मूलम्--से कि तं खंधे ? खंधे चउठिवहे पण्णत्ते, त जहानामखंघे ठवणाखंधे दव्वखंधे भावखंधे ॥ सू० ४५॥ छाया-अथ कोऽसौ स्कन्धः ? स्कन्धश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-नामस्कन्धः, स्थापनास्कन्धः द्रव्यस्कन्धः, भावस्कन्धः ॥ सू० ४५ ॥ टीका-से किं त' इत्यादि-- अस्य व्याख्या स्पष्टा, नवरं-कन्धःपरमाण्वादि समुदायः ॥४५॥ - चाहिये । (से तं सुयं) इस तरह इन श्रुतादि नामों से यह श्रुत कहा गया है।सूत्र४४॥ अब सूत्रकार (खंधं निक्खिविस्सामि) इस कथन के अनुसार सन्धाधिकार प्रारंभ करते हैं शब्दार्थ:-(से किं तं खधे) हे भदन्त ! स्कंधका क्या स्वरूप है ? (खधेचउबिहे पण्णते) उत्तरः-स्कंधका स्वरूप प्रकट करने के लिये उस के चार प्रकार प्राप्त हुए हैं-(तं जहा) वे इस तरह से हैं-(नामखधे) नाम संध (ठवणा खधे) स्थापना कध (दव्वस्कंधे) द्रव्यस्कंध (भावख धे) और भावस्क ध। स्कंध शब्द का अर्थ है पुद्गल परमाणुओं का संश्लेष । इसकी व्याख्या पहिले की गई व्याख्या की तरह ही जाननी चाहिये। पर्यायवाची शो है, सेभ समानये. (से तं सुयं) प्रारे मही શ્રતનું નિરૂપણ સમાપ્ત થાય છે. એ સૂત્ર ૪૪ છે. ७३ "खंध निविखविस्सामि' मा ४थन अनुसार १४पाधियाना भाR 3रे -से किं तं खधे" त्याह शा-(से कि खंधे ?) शिष्य गुरुने मेवो प्रश्न पूछे छे मापन! કન્વનું કેવું સ્વરૂપ હોય છે? उत्तर-(खंधे चउविहे पण्णत्ते) २४-धना २१३५नु नि३५ ४२वा निमित्त तेना या२ २ ४ा छे. (तंजहा) ते प्रा। नीय प्रमाणे छ-(नामखधे, ठवणाखंधे, दन्वखधे, भावखंधे) (१) नाभ२४५, (२) स्थापना४५, (3) द्र०य३४५ અને (૪) ભાવસ્કન્ધ સ્કન્ધ શબ્દને અર્થ “પુદગલ પરમાણુઓના સંશ્લેષ” સમજ આ સૂત્રની વ્યાખ્યા આગળ કહેલી વ્યાખ્યા પ્રમાણે સમજવી. For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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