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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिकाटीका ४४ भावश्रुतपर्यायनिरूपर्णम छाया-तस्य खलु इमानि एकाधिकानि नानाघोषाणि नानाव्यञ्जनानि नामधेयानि भवन्ति, तद्यथा श्रुतसूत्रग्रन्थसिद्धान्त शासनमाज्ञावचनमुपदेशः। प्रज्ञापना आगमोऽपि च एकार्थाः पर्यायाः सूत्रे ॥ तदेतत् श्रुतम् ॥ सू० ४४॥ टीका-'तस्स णं' इत्यादि तस्य=भावश्रुतस्य खलु इमानि वक्ष्यमाणानि एकाथिकानि-एकाविषयाणि नानाघोषाणि-उदात्तानुदात्तादि नानास्वरयुक्तानि, नानाव्यञ्जनानि-ककारा घनेकव्यञ्जनात्मकानि नामधेयनि-नामानि भवन्ति, तद्यथा-श्रुतसूत्र सिद्धान्त' ग्रन्थशासनम्-तत्र- श्रुतम्-श्रूयते गुरुसमीपे यत्ततश्रुतम १, सूत्रम्-अथानां सूचकं सूत्रम् २, ग्रन्थः-तीर्थ करकल्पपादवचनप्रसूनानो ग्रन्थनाद् ग्रन्थः ३, सिद्धान्तः अब मत्रकार भावश्रुत के पर्यायवाची शब्दों को कहते हैं। "तस्स ण इमे" इत्यादि ॥ सू० ४४ ॥ शब्दार्थ-(तस्स णं इमे णाणाघोसा णाणावंजणा एगठिया नामधेज्जा भवंति) उस भावश्रुत के ये उदात्त अनुदात्त आदि नाना स्वरों से युक्त, और ककारआदि अनेक व्यञ्जनोंवाले एकार्थविषयक नाम हैं। (त जहा) जो इस प्रकार से ह___(सुयसुत्तगंथसिद्धंतसासणे आणवयणउवएसे पन्नवणआगमे वि य एगट्ठापज्जवा सुत्ते) गुरु के समीप सुना जाने के कारण भावश्रुत का नाम श्रुत है अर्थों की सूचना इससे होती है इसलिये इसका नाम मूत्र है। तीर्थ कर रूप कल्पवृक्ष के वचन रूप पुष्पों का इसमें प्रथन रहता है इसलिये इसका હવે સૂત્રકાર ભાવકૃતના પર્યાયવાચી શબ્દોનું કથન કર છે– .. "तस्सणं इमे" त्या: शम्वार्थ-(तस्सणं इमे णाणाघोसा णाणापंजणा एगट्टियां नामधेज्जा भवंति) ते श्रुतना, हात्त -मनुहात्त माह विविध २१२।थी युत भने ४४२ 2016 भनयनाथी युत अार्थ वायॐ नाम। . (तंजहा) ते नाभी नीचे प्रमाणे - .. (सुयसुत्तगंथसिद्धंतसासणे आणवयण उवएसे पनवण आगमे वि य एगहा पज्जवा सुत्ते) (१) 01-गुरुना सभीये तेनु श्रवण ४२वामां मावे छ त કારણે તેનું નામકૃત છે. (૨) સુત્ર-અર્થોની સૂચના તેના દ્વારા મળે છે તેથી તેનું भी नाम सूत्र छ. ... (3) अ-य-तीय ४२। ३५ ४६५वृक्षना क्यन३५ १०पोनु तेभा अथन येर - - For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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