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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र अनुयोगचन्द्रिका टीका-मृ. १४ द्रव्यावश्यकस्वरूपनिरूपणम् रहितम्, अक्षरव्यतिक्रमरहितमित्यर्थः, अस्खलितम् - शास्त्रपाठसमये मध्ये मध्ये विरम्यं विरम्य तदुच्चारणम् तत्स्खलितरूपोच्चारणदोषस्तेन रहितमित्यर्थः । अभिलितं मिलितदोपरहितम्, तू शास्त्रान्तरवर्तिभिः पदैरमिश्रितं यथा - सामायिकसूत्रे दशवैकालिको तराध्यय दिपदानि न क्षिपति । अथवा - परार्तमानस्य यंत्र पदादि विच्छेदो न प्रतीयते तम्मिलितं न तथा, अमिलितम् । अव्यया डितम् - एकस्मिन्नेव शास्त्रेऽन्यान्यस्थाननिबद्धानि एकार्थानि सूत्राणि एकत्र स्थाने समानीय यत्पठितं तद् स्याम्रेडितम् अथवा - भाचाराङ्गादिसत्रमध्ये स्वबुद्धिउसने इस तरह से सीखा है कि जिस से उसके उच्चारण में अक्षरों का व्यतिक्रम नहीं हो सकता हो, (अक्त्रलिंगं) पाठ करते समय जो बीच २ में ठहर कर उसका उच्चारण नहीं करना है किन्तु धाराप्रवाह के समान सावधि जो उसे बोलता चला जाता है, (अमिलियं ) शास्त्रान्तरवर्ती पदों को मिलाकर जो उसे नहीं बोलता है - जैसे सामायिक सूत्र में दशवैकालिक, उत्तराभ्ययन के सूत्रों को बोलना - यह मिश्रित दोष हैं- इस दोष से रहितकर सामायिक पाठ का बोलना यह अमिश्रित दोष हैं । अथवा पाठ करते समय जहाँ पदादि का विच्छेद प्रती नहीं होता है, उसका नाम मिलिन है, इसरूप से नहीं बोलना इस का नाम अमिलित है - अर्थात् इस तरह से आवश्यक सूत्र का उच्चारण करता हैं कि जिसके उच्चारण में पदादिका विच्छेद अच्छी तरह से लक्षित होल रहना है । ( अवच्चामेलियं) एक ही शास्त्र में अन्य २ स्थानों पर लिखे गये सूत्रों को एक स्थान में लेकर उस शास्त्र वा पढना इसका नाम (अन्वाइदुक्खरं) नेनु ते। खेत्री रीते अध्ययन युद्ध छे ! तेनाभ्यारण वर्णते अक्षरोनो व्यतिभ था तो नथी, (अक्खलियं ) ना पाठ उरती वणते વચ્ચે વચ્ચે અટકીને તેનુ” ઉચ્ચારણ કરતે નથી પણ પાણીના પ્રવાહની જેમ मस्थलित३ये ? तेनु' (भ्यार ये लय छे, (अमीलिय ) अन्य शास्त्रवत पाने તેની સાથે સેળભેળ કરીને જે તેનું ઉચ્ચારણ કરતા નથી-જેમકે સામાયિક સૂત્રમાં દશવૈકાલિક કે ઉત્તરાધ્યયનના સૂત્રાત્તુ' ઉચ્ચારણ કરવું તેનું નામ મિશ્રિત દોષ છે, આ દાષા ન થાય એવી રીતે સામયિક પાઠનું ઉચ્ચારણ થવું જોઇએ. અથવા પઠ કરતી વખતે જયાં પાદના વિચ્છેદ થતા નથી, તેનુ નામ મિલિત છે અને તે સંકારે ઉચ્ચારણ ન કરવું તેનું નામ અમિલિત છે. એટલે કે તે આવશ્યકસૂત્રના પાહતુ એવી રીતે ઉચ્ચારણ કરે છે કે જેના ઉચ્ચારણમાં પાદના વિચ્છેદ સારી बीते दक्षित थंतो रहेछ, (अवचामलिंग ) is शास्त्रम बुढा लुहा स्थानों पर લખવામાં આવેલા એકાક સૂત્રને એક જે સ્થાનમાં લર્ષને તે શાસ્ત્રના પાઠ કરવાં For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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