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अनुयोगचन्द्रिका टीका-मृ. १४ द्रव्यावश्यकस्वरूपनिरूपणम् रहितम्, अक्षरव्यतिक्रमरहितमित्यर्थः, अस्खलितम् - शास्त्रपाठसमये मध्ये मध्ये विरम्यं विरम्य तदुच्चारणम् तत्स्खलितरूपोच्चारणदोषस्तेन रहितमित्यर्थः । अभिलितं मिलितदोपरहितम्, तू शास्त्रान्तरवर्तिभिः पदैरमिश्रितं यथा - सामायिकसूत्रे दशवैकालिको तराध्यय दिपदानि न क्षिपति । अथवा - परार्तमानस्य यंत्र पदादि विच्छेदो न प्रतीयते तम्मिलितं न तथा, अमिलितम् । अव्यया डितम् - एकस्मिन्नेव शास्त्रेऽन्यान्यस्थाननिबद्धानि एकार्थानि सूत्राणि एकत्र स्थाने समानीय यत्पठितं तद् स्याम्रेडितम् अथवा - भाचाराङ्गादिसत्रमध्ये स्वबुद्धिउसने इस तरह से सीखा है कि जिस से उसके उच्चारण में अक्षरों का व्यतिक्रम नहीं हो सकता हो, (अक्त्रलिंगं) पाठ करते समय जो बीच २ में ठहर कर उसका उच्चारण नहीं करना है किन्तु धाराप्रवाह के समान सावधि जो उसे बोलता चला जाता है, (अमिलियं ) शास्त्रान्तरवर्ती पदों को मिलाकर जो उसे नहीं बोलता है - जैसे सामायिक सूत्र में दशवैकालिक, उत्तराभ्ययन के सूत्रों को बोलना - यह मिश्रित दोष हैं- इस दोष से रहितकर सामायिक पाठ का बोलना यह अमिश्रित दोष हैं । अथवा पाठ करते समय जहाँ पदादि का विच्छेद प्रती नहीं होता है, उसका नाम मिलिन है, इसरूप से नहीं बोलना इस का नाम अमिलित है - अर्थात् इस तरह से आवश्यक सूत्र का उच्चारण करता हैं कि जिसके उच्चारण में पदादिका विच्छेद अच्छी तरह से लक्षित होल रहना है । ( अवच्चामेलियं) एक ही शास्त्र में अन्य २ स्थानों पर लिखे गये
सूत्रों को एक स्थान में लेकर उस शास्त्र वा पढना इसका नाम (अन्वाइदुक्खरं) नेनु ते। खेत्री रीते अध्ययन युद्ध छे ! तेनाभ्यारण वर्णते अक्षरोनो व्यतिभ था तो नथी, (अक्खलियं ) ना पाठ उरती वणते વચ્ચે વચ્ચે અટકીને તેનુ” ઉચ્ચારણ કરતે નથી પણ પાણીના પ્રવાહની જેમ मस्थलित३ये ? तेनु' (भ्यार ये लय छे, (अमीलिय ) अन्य शास्त्रवत पाने તેની સાથે સેળભેળ કરીને જે તેનું ઉચ્ચારણ કરતા નથી-જેમકે સામાયિક સૂત્રમાં દશવૈકાલિક કે ઉત્તરાધ્યયનના સૂત્રાત્તુ' ઉચ્ચારણ કરવું તેનું નામ મિશ્રિત દોષ છે, આ દાષા ન થાય એવી રીતે સામયિક પાઠનું ઉચ્ચારણ થવું જોઇએ. અથવા પઠ કરતી વખતે જયાં પાદના વિચ્છેદ થતા નથી, તેનુ નામ મિલિત છે અને તે સંકારે ઉચ્ચારણ ન કરવું તેનું નામ અમિલિત છે. એટલે કે તે આવશ્યકસૂત્રના પાહતુ એવી રીતે ઉચ્ચારણ કરે છે કે જેના ઉચ્ચારણમાં પાદના વિચ્છેદ સારી बीते दक्षित थंतो रहेछ, (अवचामलिंग ) is शास्त्रम बुढा लुहा स्थानों पर લખવામાં આવેલા એકાક સૂત્રને એક જે સ્થાનમાં લર્ષને તે શાસ્ત્રના પાઠ કરવાં
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