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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २८८॥ ।। २८९ ॥ ।। २९०॥ ॥ २९१ ॥ ॥ २९२॥ ॥ २९३ ॥ गुञ्जायां कृष्णला काकचिञ्चिका काकणिन्दिका। काकादनी काकनखी, रक्तिका काकवृन्तिका काकपीलुश्चक्रशल्या, दुर्मेषा ताम्रिकोच्चटा । चूडामणिदुर्मोघा च, शतपाकी शिखण्डिनी पाठायां श्रेयसी पापचेलिका वृद्धकर्णिका। वृकं तिक्ता वरतिक्ता, प्राचीना स्थायिनी वृकी एकाष्ठीला रसाम्बष्ठाऽम्बष्ठकी वृकदन्तिका । शतावाँ बहुसुता, पीवरीन्दीवरी वरी शतमूला शतपदी, शतवीर्या मधुस्रवा। नारायणी द्वीपिशत्रुद्वीपिकाभीरुपत्रिकाः महापुरुषदत्तोर्ध्वकण्टका वरकण्टका । सहस्रवीर्या[च] सुन्यभीरुः सवरणीत्यपि कटुकायां मत्स्यपित्ता, रोहिणी कटुरोहिणी । अशोकरोहिणी कृष्णभेदा तिलकरोहिणी कटम्भरा काण्डरुहा, रास्ना तिक्तकरोहिणी । तिक्ताऽरिटा कटुर्मत्स्या, चकाङ्गी शकुलादनी कपिकच्छा मह्यगुप्ता कण्डुरा दुरभिग्रहा। अजहा मर्कटी व्यण्डा, कच्छुरा कपिकच्छुरा ऋष्यप्रोक्ता शूकशिम्बी, लाङ्गली प्रावृषायणी । आर्यभी वह्निपर्याया, कपिरोमा दुरालभा मञ्जिष्ठायां रक्तयष्टिः समङ्गा विकसाऽरुणा । भण्डीरी मञ्जका भण्डी, जिङ्गी योजनवल्लयपि कालमेषी कालगोष्ठी, मण्डूकपर्णिकापि च । मरिचे मलिनं कृष्णं, वेल्लनं धर्मपत्तनम् ॥ २९४ ।। ।। २९५ ॥ ॥ २९६ ॥ ॥ २९७॥ ।। २९८ ॥ ॥ २९९ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020965
Book TitleShastra Sandeshmala Part 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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