SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। ५४ ॥ ॥ ५५ ॥ ॥५६॥ ॥ ५७॥ ॥ ५८॥ सव्वेसि पि जिणाणं जेहिं दिण्णाओ पढमभिक्खाओ। ते पयणुपेज्जदोसा दिव्वपरक्कमा जाया केई तेणेव भवेण निव्वुया सव्वकम्मओ मुक्का । केई तईयभवेणं सिज्झिसं(स्स) ति जिणसगासे निव्वाणमंतकिरिया सा चउदसमेण पढमनाहस्स। सेसाणं मासिएणं वीरजिणिदस्स छटेणं अट्ठावयं चंपुज्जल पावा सम्मेय सेलसिहरेसु । उसभ वसुपुज्ज नेमी वीरो सेसा य सिद्धिगया एगो भगवं वीरो तेत्तीसाए सह निव्वुओ पासो । बत्तीसाएहिं पंचहि सएहिं नेमी गओ सिद्धि पंचहि समणसएहि मल्ली संती उ नव सरहिं तु । अट्ठसएणं धम्मो सएहिं छहिं वासुपुज्जजिणो सत्तसहसा णंतईय जिणस्स विमलस्स छसहसाई । पंचसयाई सुपासे पउमाभे तिण्णि अट्ठसया दसहिं सहसेहिं उसहो सेसाओ सहसपरिवुडा सिद्धा। कालाई जं न भणियं पढमाणुओगतो नेयं पण्णासा लक्खेहि कोडीणं सागराणं उसभाओ। उप्पण्णो अजियजिणो तईओ तीसाइ लक्खेहि जिणवसभसंभवाओ दसहिओ लक्खेहि अयरकोडीणं । अभिनंदणाओ भगवं एवईकालेण उप्पण्णो अभिनंदणाओ सुमई नवहि उ लक्खेहि अयरकोडीणं । उप्पण्णो सुहपुत्तो सुप्पभनामस्स वुच्छामि नउई य सहसे(स्से)हिं कोडीणं सागराणं पुण्णाणं । सुमईजिणाओ पउमो एवईकालेण उप्पण्णो ॥ ५९॥ ॥ ६ ॥ ॥६१ ॥ ॥ ६२ ॥ ॥ ६३॥ ॥६४॥ 360 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy