________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मिच्छमणाइअपज्जवसियमभवजिए सपज्जवसिइयरे । छावलियं सासाणं साहियतेत्तीसयरसम्म
॥ ९२ ॥ किञ्चूणपुव्वकोडी पञ्चम तह तेरसम्मि गुणठाणे । लहुपञ्चक्खरचरिमं अन्तमुहुत्ताइ सेसाई
॥ ९३ ॥ गुणठाणाण सरूवं किंची संखेवओ इमं भणियं । अह मग्गणाइसु गई गाहा एताणि सुगमाणि
॥ ९४ ॥ सुरगाहाए गइए गुणा उ सेसेसु मग्गणेसाह । इगविगलेसुं दो दो पंचिंदीसुं चउद्दसवि
॥ ९५ ।। भूदगतरुसुं दो एगमगणिवाऊ चउद्दस तसेसु । जोए तेरस वेए तिकसाए नव दस य लोभे
॥ ९६ ॥ मइसुयओहिदुगे नव अजयाइजयाइ सत्तमणनाणे। केवलदुगम्मि दो तिण्णि दो व पढमा अनाणतिगे ॥९७ ॥ सामइयच्छेएसुं चउरो परिहार दो पमत्ताई । देसे सुहमे सग पढमचरमचउ अजय अक्खाए ॥ ९८ ॥ बारस अचक्खुचक्खुसु पढमालेसासु तिसु छ दोसु सग।। सुक्काए तेर गुणा सव्वे भव्वे अभव्वेगं
॥ ९९ ॥ वेयग ४ खइय ११ उवसमे ८ चउरो एक्कारसट्ठ तुरियाई । सेसतिगे सट्ठाणं सण्णिसु चउदस असण्णिसु दो ॥१०० ।। आहारगेसु पढमा तेरस अणहारगेसु पंच इमे । पढमंतिमदुगदुगअविरया गयाइसु गुणट्ठाणा । ॥ १०१ ।। संपइ गुणठाणेसु वि उवओगा दोण्हपंचगाहाए । भावत्थोऽयं तत्थ उ उवओगा मिच्छसासाणे ॥१०२ ।। अण्णाणाइ मइसुयविभंगाणि अचक्खुचक्खु इय पणगं । सम्मे देसे मइसुयअवहिदुगं चक्खुअच्चक्खू ॥१०३ ।।
૩૨
For Private And Personal Use Only