SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २६६॥ ॥ २६७॥ ॥ २६८॥ ॥ २६९ ॥ ॥ २७०॥ ॥ २७१ ॥ सव्वंकम्मि उ लक्खो, छवीस सहसा य दुण्णि सया गणहरकेवलिमणओ-हिपुविवेउविवाइणं संखं । मुनिसंखाए सोहिअ, नेआ सामण्णमुणिसंखा एगूणवीसलक्खा , तह छासीई हवंति सहसाई। इगवण्णा अहियाई, सामण्णमुणीण सव्वग्गं बावीससहसनवसय, उसहस्स अणुत्तरोववाइमुणी । नेमिस्स सोलपास-स्स बार वीरस्स अट्ठसया ते सेसाणमनाया, सव्वेसि पइण्णगाससीसकया। निअनिअसीसपमाणा, नेया पत्तेयबुद्धा वि अंगाईसु अबद्धा, नाणीहिं पयासिआ य जे ते अ। आएसा वीरस्स य, पंचसया णेगह ण्णेसिं कुरुडुकुरुडाण नरओ, वीरंगुटेण चालिओ मेरू । तह मरुदेवी सिद्धा, अच्चंतं थावरा होउं वलयागारं मुत्तुं, सयंभुरमणम्मि सव्व आगारा । मीणपउमाण एवं, बहु आएसा सुअअबद्धा साहुगिहीण वयाई, कमेण पण बार पढमचरिमाणं । अण्णेसिं चउ बारस, चउत्थ पंचमवएगत्ता सड्डाणं हिंसालिय-अदत्त मेहुणपरिग्गहनिवित्ती। इय पण अणुव्वयाई, साहूण महव्वया एए दिसिविरइ भोगउवभो-गमाण तह णत्थदंडविरई अ। समइयदेसावगासिय-पोसह तिहिसंविभागवया जिण कप्पियाण बारस, चउदस थेराण सव्वतित्थेसु। पणवीस अज्जियाणं, उवगरणमुवग्गहिअमुवरि || २७२॥ ॥ २७३॥ || २७४॥ || २७५ ॥ ॥२७६ ॥ ॥ २७७ ॥ 305 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy