________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इय कारणओ पगई ९ ठी १० अणुभाग १५ प्पएसओ १२ चउहा। बन्धं भणइ तओ इह बारस दारा इमे हुन्ति
॥ २० ॥ पंजलनाएण इहं पढिज्जमाणासु दारगाहासु । नव चेव दुवाराई लक्खिज्जन्ती पुणो विवरे
॥ २१ ॥ चउहा कयम्मि हुन्ती बन्धविहाणस्स बारस दुवारा । अह पढमे दारदुगे किञ्चिविसेसं पवक्खामि
।। २२ ॥ उवओगा जोगविहि त्ति दारदुगमेत्थ सुत्तगारेण । अट्ठहि ठाणेहि इगारसहि गाहाहि भणियन्ति
॥ २३ ॥ तहि पढमे जियठाणा १ दुइए ठाणम्मि मग्गणेसु जिया २ । जीवेसुं उवओगा तइयट्ठाणे ३ तह जिएसु
॥२४॥ जोगा य वणिया तुरियम्मि ठाणम्मि ४ पंचमम्मि पुणो । गुणठाणगाइ ५ तह मग्गणेसु गुणठाणगा छठे ॥ २५ ॥ सत्तमयम्मि गुणेसुं उवओगा हुन्ति ७ तह गुणेसु विय । जोगा पदंसिया अट्ठमम्मि ठाणम्मि ८ इह सुत्ते ॥ २६ ॥ इह जियगुणठाणगए उवओगदुगे वि एगमेवेयं । उवओगाभिहदारं एवं जोगे दुभेए वि
॥ २७॥ जोगभिहाणं दारं एगं चिय एत्थ होइ विण्णेयं । उवओगजोगवसओ जीवगुणा जं दुगं भणियं ॥ २८ ॥ जियगुणअणन्तरे जं पच्छा वा मग्गणाइ भणियाइं । दुसु ठाणेसुं ताइ वि दारत्तेणं न नेयाणि
।। २९ ॥ एवमुवओगजोगा दारदुगं वणियं सभेयं पि। अहुणावण्णियदारक्कमेण निसुणेह भावत्थं
॥ ३० ॥ इह उवओगा जोगा ठाणेसुं जीवगुणसरूवेसु । भणियव्वा तहि पढमं जीवट्ठाणाणिमाणेह
॥ ३१ ॥
૨૬
For Private And Personal Use Only