________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सव्वे वि पव्वयवरा, समयक्खित्तम्मि मंदरविहूणा । धरणियलं ओगाढा, उस्सेहचउत्थयं भागं
।। ६२० ।। चउणउइसयं मेरुं, विदेहमज्झा विसोहइत्ता णं । सेसस्स य जं अद्धं, तं विक्खंभो कुरूणं तु || ६२१ ॥ सत्तत्तरिसयाई, चउदसअहियाई सत्तरसलक्खा। होइ कुरुविक्खंभो, अट्ठ य भागा य परिसेसा ॥६२२॥ हरया चउसहस्सा, जमगाण सहस्स सोहय कुरूओ। सेसस्स सत्तभागं, अंतरमो जाण सव्वेर्सि
॥ ६२३ ॥ चत्तालीस सहस्सा, दो लक्खा नव सया य अउणट्ठा एगो य सत्तभागो, हरयनगाणंतरं भणियं
॥ ६२४ ॥ अडवण्णा सत्तसया, पण्णरस सहस्स दुण्णि लक्खा य। वासो उ भद्दसाले, पुव्वेणेमेव अवरेण
॥६२५ ॥ तस्सायामा दुगुणा, मंदरसहिया दुसेलविक्खंभं। सोहित्ता जं सेसं, कुरूण जीवा उ जाणाहि चत्तारि लक्ख छत्तीस, सहस्सा नव सया य सोलहिया। दोण्ह गिरीणायामो, संखित्तो तं धणु कुरूणं सोमणसमालवंतो, दीहा वीसं भवे सयसहस्सा । तेयालीस सहस्सा, अउणावीसा य दुण्णि सया ॥६२८ ॥ सोलसहियसयमेगं, छव्वीसहस्स सोलस य लक्खा। विज्जुप्पभो नगो गंधमायणो चेव दीहाओ ॥ ६२९ ॥ अउणत्तरी सहस्सा, लक्खा छत्तीस तिण्णि य सयाई । पणतीस जोयणाणि य, धणुपुट्ठाइ कुरूणं तु ॥ ६३०॥ पुव्वेण मंदराणं, जो आयामो उ भद्दसालवणे। सो अडसीइ विहत्तो, विक्खंभो दाहिणुत्तरओ ।। ६३१ ।।
॥ ६२६ ॥
૩૨૦
For Private And Personal Use Only