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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २६१ ।। ॥ २६२ ॥ ।। २६३ ॥ ॥ २६४॥ ।। २६५ ॥ ॥ २६६॥ पंच सए उव्विद्धा, ओगाढा पंच गाउय सयाई। अंगुलअसंखभागं, विच्छिण्णा मंदरतेणं गिरि गंधमायणो पीयओ य नीलो य मालवंत गिरी। सोमणसो रययमओ, विज्जुप्पभ जच्चतवणिज्जो अट्ठ सया बायाला, एक्कारस सहस्स दो कलाओ य । विक्खंभो उ कुरूणं, तेवण्णं सहस्स जीवा सिं वइदेहा विक्खंभा, मंदरविक्खंभसोहियद्धं जं । कुरुविक्खंभं जाणसु, जीवाकरणं इमं होइ मंदरपुव्वेणायय, बावीससहस्स भद्दसालवणं । दुगुणं मंदरसहियं, दुसेलरहियं च कुरु जीवा जीवा दुसेलसहिया, मंदरविक्खंभरहियसेसद्धं । पुव्वावरविक्खंभो-नायव्वो भद्दसालस्स आयामो सेलाणं-दोण्ह वि मिलिओ कुरूण धणुपिटुं। धणुपिटुं दुविहत्तं-आयामो होइ सेलाणं चत्तारि सया अट्ठा-रसोत्तरा सट्ठि चेव य सहस्सा । बारस य कला सकला-धणुपट्ठाई कूरूणं तु देवकुराए गिरिणो, विचित्तकूडो य चित्तकूडो य । दोजमगपव्वयवरा, वडिसया उत्तरकुराए एए सहस्समुच्चा, हरिकूडसमा पमाणओ होति । सीया सीओयाणं, उभओ कूले मुणेयव्वा सीयासीयोयाणं, बहुमज्झे पंच पंच हरयाओ। उत्तरदाहिणदीहा, पुव्वावरवित्थडा इणमो पढमे त्थ नीलवंतो, उत्तरकुरुहरय चंदहरओ य । एरावयद्दहो च्चिय, पंचमओ मालवंतो य ।। २६७॥ ॥ २६८ ॥ ॥ २६९ ॥ ॥ २७० ॥ ॥ २७१ ॥ ॥ २७२ ।। ૨૯૦ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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