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॥ २३० ।
पवहे दहवित्थारो, असीइभइओ उ दाहिणमुहीणं । स च चालीसइभईओ, सो चेव य उत्तरमुहीणं ॥ २२५ ॥ जो उण उत्तरपासे, एसेव गमो हवेज्ज नायव्वो। जो दाहिणाभिमुहीणं, सो नियमो उत्तरमुहीणं ॥ २२६ ॥ जो जीसे वित्थारो, सलिलाए होइ आढवंतीए । सो दसहिं पडुप्पण्णो, मुहवित्थारो मुणेयव्वो ॥ २२७॥ जो जत्थ उ वित्थारो, सलिलाए होइ जंबूदीवम्मि। पण्णासइमं भाग, तस्सुव्वेहं वियाणाहि
॥ २२८॥ पवहमुहवित्थराणं, विसेसमद्धं भयाहि सरियाणं । सरियायामेणं च उ, सा वुड्डी एगपासम्मि
॥ २२९ ॥ सा चेव दोहि गुणिया, उभओ पासम्मि होइ परिवुड्डी । जावइया सलिलाओ माणुसलोगम्मि सव्वम्मि पणयालीस सहस्सा, आयामो होइ सव्वसरियाणं । एसेव भागहारो सरियाणं वुड्डिहाणीसु
॥ २३१ ॥ जा जाओ उ पवूढा सलिला सेलेहि तेसिं विक्खंभो। दहवित्थारेणूणो, सेसद्धं सलिलं गच्छंति
॥ २३२ ।। एस विही सिंधूए, अवराभिमुहीए होइ नायव्वो। सलिलाऽवि रोहियंसा, हरयाउ उत्तरदिसाए ॥ २३३ ।। जोयणसयाणि दुण्णि उ, गंतुं छावत्तराणि छच्च कला। नगसिहराओ निवडिय, नियए कुंडम्मि वइरतले कुंडुव्वेहो दीवुस्सओ य गंगासमो मुणेयव्वो। जिब्भियमाई सेसो, दुगुणो पुण रोहियंसाए ।। २३५ ॥ तोरणवरेणुदीणेण निग्गया निययकुंडओ साऽवि । सद्दावई नगवरं, अप्पत्ता दोहिं कोसेहि
।। २३६॥
।। २३४॥
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