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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १४१॥ ॥ १४२॥ || १४३ ॥ ॥१४४॥ ॥ १४५ ॥ ॥ १४६ ॥ सिद्धे सोमणसेऽवि य, कूडे तह मंगलावई चेव। देवकुरुविमलकंचण-वसिट्ठकूडे य सत्तमए सिद्धायणे य विज्झु-प्पभे य देवकुरुबंभकणगे य। सोवत्थी सीओया, सयंजलहरी नवगा। उ उभओ विजयसनामा, दो कूडा तइय उ गिरीसनामा । चउत्थो य सिद्धकूडो, वक्खारगिरीसु चत्तारि सिद्धे य निलवंते, पुव्वविदेहे य सीयकित्ती य। नारीकंतविदेहे, रम्मय उवदंसणे नवमे सिद्धे य रुप्पि रम्मय, नरकंता बुद्धि रुप्पिकूला य। हेरण्णवए मणिकंचणे य रुप्पिम्मि अढे ए सिद्धे य सिहरिकूडे, हेरण्णवए सुवण्णकूडे य । सिरिदेवि रत्त आवत्तणे य तह लच्छिकूडे य रत्तावइ आवत्ते, गंधावइदेवि एरवयकूडे । तीगिच्छीकूडेऽवि य, इक्कारस होति सिहरम्मि एरवए विजएसु य, दो दो जम्मुत्तरद्ध सरिनामा । वेयड्डेसुं कूडा, सेसा ते चेव जे भरहे जत्थिच्छसि विक्खंभं, कूडाणं उवइत्तू सिहेरहि । तं दुभइयमुस्सेहद्धसंजुयं जाण विक्खंभं जत्थिच्छसि विक्खंभं, मूलाउ उप्पइत्तु कूडाणं । तं दुभइय मूलिल्ला विसोहिए जाण विक्खंभं छ जोयणे सक्कोसे, वेयड्डनगाण हुंति कूडा उ । उच्चिट्ठा विच्छिण्णा, तावइयं चेव मूलम्मि अद्धं से उवरितले, मज्झे देसूणगा भवे पंच । देसूणा वीसं पण्ण-रस दस परिरउ जहासंखं ॥ १४७॥ ॥ १४८ ॥ ॥ १४९ ॥ ।। १५०॥ ॥ १५१॥ ।। १५२॥ ૨૮૦ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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