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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अचित्त जोणि सुरनिरय, मीसगब्भे तिभेय सेसाणं । सीउसिण निरय सुर गब्भ, मीस तेउ सिण सेस तिहा हय गभ संखवत्ता, जोणी कुम्मुण्णयाइं जायंति । अरिह हरि चक्किरामा, वंसी पत्ताइ सेसनरा आउस्स बंधकालो, अबाह कालो य अंतसमओ य । अपवत्तण णपवत्तण, उवक्कम णुवक्कमा भणिया बंधंति देव नारय, असंख नर तिरि छमास सेसाउ । परभवियाऊसेसा, निरुवक्कमतिभागसेसाउ सोवक्कमाउया पुण, सेसतिभागे अहव नवमभागे । सत्तावीसइमे वा अंतमुहुत्तं तिमे वा वि जइमे भागे बंधो, आउस्स भवे अबाहकालो सो । अंते उजुगइ इग समय वक्क चउ पंच समयंता उज्जुगइ पढम समए परभवियं आउयं तहाहारो । वक्काइ बीय समए, परभवियाउं उदयमेई Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इग दुति चउ वक्कासु, दुगाइ समएसु परभवाहारो दुग वक्काइसु समया, इग दो तिण्णी य अणाहारा बहुकाल वेयणिज्जं, कम्मं अप्पेण जमिह कालेणं । वेइज्जइ जुगवं चिय, उइण्ण सव्वप्पएसग्गं अपवत्तणिज्जमेयं, आउं अहवा असेसकम्मं पि । बंध - समए वि बद्धं, सिढिलं चिय तं जहाजोगं जं पुण गाढ निकायण, बंधेणं पुव्वमेव किल बद्धं । तं होइ अणपवत्तणजुग्गं कम वेयणिज्ज फलं उत्तम चरम सरीरा, सुर नेरइया असंख नर तिरिया । हुति निरुवक्कमाओ, दुहा वि सेसा मुणेयव्वा ૨૬ For Private And Personal Use Only ॥ ३२४ ॥ ।। ३२५ ।। ॥ ३२६ ॥ ॥ ३२७ ॥ ।। ३२८ ॥ ॥ ३२९ ॥ ॥ ३३० ॥ ॥ ३३१ ॥ ॥ ३३२ ॥ ॥ ३३३ ॥ ।। ३३४ ॥ ॥ ३३५ ॥
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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