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चत्तारि पंच जोयण, सयाइं गंधो मणुअलोगस्स । उ8 वच्चइ जेणं, न हु देवा तेण आवंति
॥ ३२२ ॥ एवं देवोगाहण, भवणाओ वण्णिया समासेणं । ठिइ पुढवी ओगाहण, नरएसु अओ परं वुच्छं ॥ ३२३॥ सागरमेगं तिय सत्त, दसय सत्तरस तह य बावीसा । तित्तीसं चेव ठिई, सत्तसु पुढवीसु उक्कोसा
॥ ३२४ ॥ जा पढमाए जिट्ठा, सा बीयाए कणिट्ठया भणिया। तरतमजोगो एसो, दसवाससहस्स रयणाए
॥ ३२५ ॥ दस नउई य सहस्सा, पढमे पयरम्मि ठिइ जहण्णियरा। सा सयगुणिया बीए, तइयम्मि पुणो इमा होइ ॥३२६ ॥ नउई - लक्ख जहण्णा, उक्कोसा पुव्वकोडि निद्दिट्ठा । आईए पुव्वकोडी दसभागो सायरम्मियरा ॥ ३२७ ।। दसभागे पंचमए, दो दस भागाओ होइ उक्कोसा। एगुत्तरवुड्डीए, दसेव भागा भवे जाव
॥ ३२८ ॥ उवरि खिइठिइविसेसो, सगपयरविभाग इत्थ संगुणिओ, उवरिमखिइठिइसहिओ, इच्छिय पयरम्मि उक्कोसा ॥३२९ ।। अत्थि निमीलनमित्तं, नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं । नरए नेरइयाणं, अहोनिसिं पच्चमाणाणं सत्तसु खित्तसहावा, अण्णोण्णुदीरिया य जा छट्टि। तिसु आइमासु वेयणा, परमाहम्मियसुरकया य ॥ ३३१ ।। घम्मा वंसा सेला, अंजण रिद्धा मघा य माघवई । पुढवीणं नामाई, रयणाई हुंति गोत्ताई
॥ ३३२ ॥ उदही-घण-तणु-वाया, आगासपइट्ठियाओ सव्वाउ। घम्माई पुढवीओ, छत्ताइछत्तसंठाणा
|| ३३३ ।।
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