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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१०६॥ ॥ १०७ ॥ || १०८ ॥ ॥ १०९ ॥ ॥ ११० ॥ एगसट्ठिभाग काउण, जोयणं चंदमाइ पंचण्हं । आयामं विक्खंभं, उच्चत्तं चेव वोच्छामि छप्पण्णा अडयाला, अद्धं गाउय तहद्ध गव्वूयं । आयामं विक्खंभं, आयामद्धं च उच्चत्तं चंदविमाणुच्चत्तं, अट्ठावीसमिगसट्ठिभागाउ । चउवीस पुण भागा, सूरविमाणस्स उच्चत्तं माणुसनगाउ बाहि, चंदाइया तयद्धपरिहीणा । गइठिइभेएण इमे, अभिंतर बाहिरा नेया धरणियलाउ समाउ, सत्तहिं नउएहिं जोयणसएहिं । हिट्ठिलो होइ तलो, सूरो पुण अट्टहिं सएहिं अट्ठसए आसीए, चंदा नव चेव होइ उवरितलो। जोयणसयं दहुत्तर, बाहुल्लं जोइसस्स भवे सव्वभिंतर भीइ, मूलो पुण सव्वबाहिरो भमइ । सव्वोवरि च साइ, भरणी पुण सव्व हिट्ठमिया बत्तीसं चंदसयं, बत्तीसं चेव सूरीयाण सयं । सयलं मणुस्सलोए, भमंति ए ए पयासंतो इक्कारसेक्कवीसा, सयमिक्काराहिया य एक्कारा । मेरु अलोगा बाहि, जोइसचक्कं चरइ ठाइ रिक्खग्गह तारग्गं, दीवसमुदेसु जईत्थ से नाउं। तस्स ससीहि य गुणिय, रिवखग्गह तारगग्गं तु चत्तारि चेव चंदा, चत्तारि य सूरिया लवणतोए। बारं नक्खत्तसयं गहाण तिण्णेव बावण्णा दो चेव सयसहस्सा, सत्तट्ठी खलु भवे सहस्सा य। नव य लवणजले, तारागण कोडीकोडीणं ॥ ११२॥ ॥ ११३॥ ॥ ११४॥ ॥ ११५ ।। ॥ ११६ ॥ ॥ ११७ ॥ ૨૦૬ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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