________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥१०८६ ॥
॥ १०८७॥
॥ १०८८ ॥
॥१०८९ ।।
॥१०९० ॥
|१०९१ ॥
पइसमयं जीवेहि य संगहिज्जंति आगमे भणियं । अणुभागज्झवसाय-ट्ठाणाणि य पुण समत्था वि अस्संखेया भणिया तेहिं तो जेण कम्मदेसाण । अणंतगुणत्तं सिद्धं एत्तोऽविभागपलिच्छेया अणंतगुणिया हवंति इह दिटुंतो इमो उ विण्णेओ। जह सरसखीरपिचुमंदतणयरसथालियासु इव अणुभागबंधज्झवसायट्ठाणेहिं तु तंदुलेसु इव । कम्मपरमाणुसु रसो जणयइ एगेगयस्स वि य सो परमाणुस्सरसो केवलिपण्णाएँ छिज्जमाणो छ। सव्वजियणंतगुणिया जत्थ अविभागपलिच्छेया। अइसुहुमयाइ जाओ भागाओ नेव उट्ठई भागो। अण्णो सो अविभागपलिच्छेओ होइ नायव्वो अणुभागस्स विभागो पलिच्छेया एयरूवया एए । परमाणुं परमाणुं पइ सव्वेसु कम्मखंधेसुं सव्वेसि जीवाणं भवत्थअभवत्थयाण णंतगुणा। अविभागपलिच्छेया संपत्ता तो जओ भणियं गहणसमयम्मि जीवो उप्पाएइ उ गुणे सपच्चयओ। सव्वजियाणंतगुणे कम्मपएसेसु सव्वेसु कम्माण पएसा पुण सिद्धाण विणतयम्मि भागम्मि । सव्वे वि हु वटुंते अओ उ कम्मपएसाणं अविभागपलिच्छेयाणंतगुणा हुंति इई सिद्धमिणं । एतो अप्पबहुत्तं गंथे जत्थत्थि तं आह सुयपवरदिट्ठिवाए गाहोत्तरद्धेण तत्थ सुयपवरं । उत्तमसुत्तं जं किर दिट्ठीवायाभिहं अंगं
।। १०९२ ॥
॥१०९३ ॥
॥१०९४ ।।
॥१०९५ ॥
॥ १०९६ ॥
॥ १०९७॥
૧૧૫
For Private And Personal Use Only