SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १७॥ ॥१८॥ ॥ १९॥ ॥ २० ॥ ॥ २१ ॥ ॥ २२ ॥ जइ ते फुडं अजोगा ता-तण्णमणाइकीसाणुण्णायं । कारणमवि हु इहरा पासंडीणं पि तं होउ अह ते नो जिणलिंगे का तदविक्खा हु भावसारत्ते । अणुअत्तणा य भणिआ तेसि पि हु जेण वुत्तमिमं अग्गीयादाइण्णे खित्ते अण्णत्थ ठिइअभावम्मि। भावाणुवघायणुवत्त-णाए तेसिं तु वसिअव्वं इहरा सपरुवधाओ उच्छोभाईहिं अत्तणो लहुआ। तेसिं च कम्मबंधो दुगंपि एअं अणिट्ठफलं ता दव्वओ उ तेसिं अरत्तदुद्वेण कज्जमासज्ज । अणुवत्तणत्थमेसि कायव्वं किंपि उण भावाओ न परुवंति य सुद्ध एअंपि य दूसणं जहाजोगं । पण्णवणं चिअ वुत्तं इहरा दोसो त्ति जं भणिअं आम घडे निहित्तं जहा जलं तं घडं विणासेइ । इय सिद्धंतरहस्सं अप्पहारं विणासेइ जोग्गाजोग्गमबुज्झिय धम्मरहस्सं कहेइ जो मूढो। संघस्स य पवयणस्स य धम्मस्स य पच्चणीओ सो न पमाणजुत्तमुवहिं धरंति एअंपि तुच्छमाभाइ । असढोवदंसिअत्तेण तब्विहस्सुवहिनिवहस्स इहरा बाहुठिअं पत्तं एगं तु पडलयच्छण्णं । पत्ता बंधकयं पुण बीअं मत्तं अगोअर उ एगंगि अ रयहरणं भवे न इण्डिं विसिट्ठमुणिणो वि। तो एत्थपयत्थम्मि य पुव्वमुणिणो चिअ पमाणं सेवंति य अववायं दुसणमेअंपि घडइ नो सम्मं । तव्विहसंघणयणाई विरहा सुत्तुत्ति उ तह य ॥ २३ ॥ ॥ २४ ॥ ॥ २५ ॥ ॥ २६ ॥ ॥ २७॥ ॥ २८॥ ૬૫ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy