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पू.आ.श्रीजिनप्रभसूरिकृतम्
॥ जोगविहाणपयरणं ॥ नमिऊण जिणे पयओ जोगविहाणं समासओ वोच्छं। पइअंगसुयक्खंधं अज्झयणुद्देसपविभत्तं जम्मि उ अंगम्मि भवे दो सुयखंधा तहिं तु कीरति । सुयखंधस्स दिणेणं दोवि समुद्देसणुण्णाओ अह एगो सुयखंधो अंगे तो दिणदुगेण सुयखंधो । अणुण्णवइ अंगं पुण सव्वत्थ वि दोहिं दिवसेहिं आवस्सयसुयखंधो तहियं छ च्चेव हुँति अज्झयणा। अहिं दिणेहिं वच्चइ आयामदुगं च अंतम्मि दसयालियसुयखंधो दस अज्झयणाइं दो य चूलाओ। पिंडेसणअज्झयणे भवंति उद्देसगा दुण्णि विणयसमाहीए पुण चउरो तं जाइ दोहि दिवसेहिं । इक्केक्कवासरेणं सेसा पक्खेण सुयखंधो आवस्सय-दसकालियमोइण्णा ओह-पिंडनिज्जुत्ती। एगेण तिहिं च निव्विएहिं णंदि-अणुओगदाराई एगो य सुयक्खंधो छत्तीस भवंति उत्तरज्झयणा । तत्थेक्केक्कझयणं वच्चइ दिवसेण एगेण नवरि चउत्थमसंखयमज्झयणं जाइ अंबिलदुगेणं । अह पढइ तदिणि च्चिय अणुण्णवइ निव्दिगइएणं सव्वो वि य सुयखंधो वच्चइ मासेण नवहि य दिणेहिं । केसिं च मएण पुणो अट्ठावीसाइ दिवसेहिं जा अ-चउत्थ चउद्दस इगेगकालेण जाइ इक्किको। दो दो इगेगकालेण जंति पुण सेस बावीसं
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