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चउम्मासगाणुसारा जइ पंचदसीइ पक्खपडिक्कमणं । ता कह न पंचमीए संवच्छरियाणुसारेणं
॥ २४॥ तह पज्जुसवण अट्ठम उत्तरपारणगनिमित्तभणणाओ। भद्दवयसेयपडिवायादिवसम्मि निसीहचुण्णीए ॥ २५ ॥ नज्जइ पक्खुववासो पंचदसीए न अस्थि साहूणं । कहमण्णहा घडिज्जा तहियं तम्मित्तनिद्देसो
॥ २६॥ अह ववहारे पक्खियदिणम्मि चेईयजईण वंदणयं । भणिओ य अभत्तट्ठो इमीइ गाहाइ वक्खाणे
॥ २७॥ किइकम्मस्स अकरणे काउस्सग्गे तहा अपडिलेहा। पोसहियतवे य तहा अवंदणे चेइसाहूणं ।
॥ २८॥ जीए वि पक्खियदिणे उववासाई तवो इहं सुत्ते। निविगइयाइ पक्खिय पुरिसाइविभागओ नेयं ॥२९॥ तो तत्थ संकिज्जइ पंचदसी सा न हुज्ज मा कह वि। पक्खिअ? (अत्रोत्तरम्) महानिसीहाइएहि तण्णो विरोहाउ॥ ३० ॥ अह सव्वप्पामण्णं पुढो पुढो तेण न विरोहो वि । चउमासगं च एवं छट्टेणं पक्खियं पि भवे
|| ३१ ॥ अह होउ को विरोहो, अट्ठमछट्ठाइवयणओसण्णो । अह चउद्दसीइ पढमो बीओ पुण पक्खियम्मि भवे ॥३२॥ चउमासिगे वि एवं पावइ छटुं न जुज्जइ तत्तो। तं पुण सुत्ते भणियं छट्टेणं पडिक्कमेयव्वं
॥३३॥ समणीणट्ठमीपक्खियवायणकाले सुसाहुवसहीए। गमणे चउद्दसीवंदणत्थगमणं विरुज्झिज्जा अट्ठमीपक्खिए मुत्तुं वायणाकालमेव य। सेसकालमइंतीओ नायव्वा अकालचारिओ
॥ ३५ ॥
॥ ३४ ॥
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