SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥७॥ ॥८ ॥ ॥९॥ ॥१०॥ ॥ ११ ॥ ॥१२॥ किइकम्मं पि कुणंतो न होइ किइकम्मनिज्जराभागी। पणवीसामण्णयरं साहू ठाणं विराहतो पणवीसदोसपरिसुद्धं किइकम्मं जो युंजइ गुरूणं । सो पावइ निव्वाणं अचिरेण विमाणवासं वा इच्छा य अणुण्णवणा, अव्वाबाहं, च जत्त, जवणा य। अहराहखामणा, वि य छट्ठाणा हुंति वंदणए विणओवयार, माणस्स भंजणा, पूयणा गुरुजणस्स। तित्थयराण य आणा, सुयधम्माराहणा, ऽकिरिया छंदेण , अ(5)णुजाणामि, तहत्ति, तुब्भं वि वट्टए एवं । अवमवि खामेमि तुब्भे(मं ?), वयणाई वंदणरिहस्स आयारिय, उवज्झाए, पवत्ति, थेरे, तहेव रायणिए । एएसिं किइकम्मं कायव्वं निज्जरह्माए पासत्थो, ओसण्णो, होइ कुसीलो, तहेव संसत्तो। अहछंदो वि य एए अवंदणिज्जा जिणमयम्मि पासत्थाईवंदमाणस्स नेव कित्ती न निज्जरा होई । कायकिलेसं एमेव कुणइ तह कम्मबंधं च किइकम्मं पि पसंसा सुहसीलजणम्मि कम्मबंधाय। जे जे पमायठाणा, ते ते उववूहया होति विक्खित्त पराहुत्ते, पमत्ते , मा कयावि वंदिज्जा। आहारं च करितो, नीहारं वा जइ करेइ आयप्पमाणमित्तो चउद्दिसि होइ ऽवग्गहो गुरूणो । अणणुण्णायस्स सया न कप्पए तत्थ पविसेउं वंदण, चिइ, किइकम्मं, पूयाकम्मं च, विणयकम्मं च । वंदणयस्स इमाइं हवंति पंचेव नामाई ॥ १३॥ ॥ १४ ॥ ॥ १५ ॥ ॥ १६ ॥ ॥१७॥ ॥ १८ ॥ ૧૫૨ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy