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सयमेव बुद्धसिद्धा, तहेव पत्तेयबुद्धसिद्धा य । पढमा दुविहा एगे, तित्थयरा तदियरा अवरे तित्थयरवज्जियाणं, बोही उवही सुयं च लिंगं च । नेयाई तेसि बोही, जाईसरणाइणा होइ मुहपत्ती रयहरणं, कप्पतिगं सत्तपायनिज्जोगो । इय बारसहा उवही, होइ सयंबुद्धसाहूणं हवइ इमेसि मुणीणं, पुव्वाहीयं सुयं अहव नेयं । जइ होइ देवया से, लिंगं अप्पइ अह न गुरुणो जइ एगागी वि हु विहरणक्खमो तारिसी व से इच्छा । ता कुणइ तहमण्णह, गच्छवासमणुसरइ नियमेण पत्तेयबुद्धसाहूण, होइ वसहाइदंसणा बोही। पुत्तियरयहरणेहिं, तेसि जहण्णो दुहा उवही मुहपत्ती रयहरणं, तह सत्त य पत्तयाइनिज्जोगो। उक्कोसोवि नवविहो, सुयं पुणो पुव्वभवपढियं इक्कारस अंगाई, जहण्णओ होइ तं तहुक्कोसं । देसेण असंपुण्णाई, हुंति पुव्वाइं दस तस्स लिंगं तु देवया देइ, होइ कइयावि लिंगरहिओ वि। एगागि च्चिय विहरइ, नो गच्छइ गच्छवासे सो तह बुद्धबोहियसिद्धा, नपुंसलिंगम्मि इत्थेिलिगम्मि। नरलिंगे तह सिद्धा, गिहअण्णसलिंगसिद्धा य ते इह एगगसिद्धा, इक्किक्का इक्कसमयसिद्धा जे । इक्कसमए अणेगे जे सिद्धा णेगसिद्धा ते एमाइ सुयवियारो, जयंति ! उल्लसिरजुनिपब्भारो। निच्चंपि जस्स रुच्चइ, सो मुच्चइ झत्ति कम्मेहिं
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