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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सामाइयं च छेओ-वट्ठावणियं च सुटु परिहारं । तह सुहुमसंपरायं, अहखायं पंचम चरितं सावज्जजोगविरइत्ति, तत्थ समाइयं दुहा तं च । इत्तरमावकहंति य, पढमं पढमंतिमजिणाणं तिथेसु अणारोविय - वयस्स सेहस्स थोवकालीयं । सेसाणमावकहियं, तित्थेसु विदेहयाणं च परियायस्स उ छेओ, जत्थोवट्ठावणं वसुं च । छेओवट्ठावणमिह तमणइयारेयरं दुविहं सेहस्स निरइयारं, तित्थंतरसंकमे व तं होज्ज । मूलगुणघाइणो सा-इयारमुभयं च ठियकप्पे आचेलुक्कुद्देसिय, सिज्जायर रायपिंड किइकम्मे । वय जिट्ठ पडिक्कम, मासं पज्जोसवणकप्पो आचेलुक्कुद्देसिय, पडिकमणे रायपिंड मासेसु । पज्जुसणाकप्पम्मिय, अट्ठियकप्पो मुणेयव्वो आचेलुक्को धम्मो, पुरिमस्स पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमयाण जिणाणं, होइ अचेलो सचेलो वा इह पुरिमपच्छिमाणं, जिणाण एगं मुणि जमुद्दिस्स । आहारमा विहियं तं सव्वेसिं न कप्पेइ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir > मज्झिमाणं तु इमं जं कयमुद्दिस्स तस्स चेवत्ति । नो कप्पइ सेसाण उ; तं कप्पइ एस मेरत्ति असणाइचक्कं वत्थपत्तकंबलगपायपुंछणयं । निर्वापडम्मि न कप्पइ पुरिमंतिमजिणजईणं तु ૧૩૫ For Private And Personal Use Only ॥ ४८ ॥ ॥ ४९ ॥ ॥ ५० ॥ ॥ ५१ ॥ सक्किमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमयाण जिणाणं- कारणजाए पडिक्कमणं ॥ ५२ ॥ ॥ ५३ ॥ 1148 11 ॥ ५५ ॥ ॥ ५६ ॥ ॥ ५७ ॥ ।। ५८ ।। ।। ५९ ।।
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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