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पू.आ. श्रीदेवेन्द्रसूरिविरचितम्
॥नवतत्त्वप्रकरणम् ॥ जियअजियपुण्णपावा-सवसंवरनिज्जरा उ बंधम्मि । मुक्खत्ति तत्तवग्गे-सया रुई होइ कायव्वा तत्थ जिया एगविहा, दुहा तिहा चउह पंचहा छद्धा । चेयण तस इयरेहि, वेयगईकरण काएहिं भूमीजलजलणाणिल-वणस्सई थावरा इमे पंच । बियतियचउपंचिंदिय-तस चउहा नवविहा सव्वे एगिदिय सुहुमियरा-सण्णियर पणिदिया सबितिचऊ। अपज्जत्ता पज्जत्ता, चउदसहा अहव हुंति जिया सुहुमियरभूजलाणल-पवणाणंतवण इयरवण विगला । सण्णि असण्णि पर्णिदी-अपजत्तपजत्तबत्तीसं ते सुक्क किण्हपक्खिय-भेएहिं अहव भव्वभव्वेहि। चउसट्ठिविहा कम्म-प्पगईभेएहिं बहुहा वा पंच अजीवा, धम्मा-धम्मागासद्धपुग्गला तत्थ । पढमा चउरो अकिरिय-अरूविणो रूविणो चरिमा तेसिं भेया लक्खण - संठाण पमाण अप्पबहुभावा । नेया भेया तिय तिय - तिय इगचउ इय अजीवचउदसगं धम्मत्थिकायदव्वं, तस्स य भागो विवक्खिओ देसो। अविभागो उ पएसो, एवमधम्मे नभे वि तियं कालो एगविहो चिय, भावपरावत्तिहेउ निच्छइओ। ववहारिओ उ रविगइ - गम्मो समयाइ णेगविहो समयावलिय मुहुत्ता, दिवस अहोरत्त पक्खमासा य । संवच्छरजुगपलिया, सागरओसप्पिपरियट्टा
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