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।। २५७॥
।। २५९ ॥
मिच्छादिट्ठी विरया, चरित्तमुद्दिस्स तेय मीसम्मि।। सम्मदिट्ठी विरया,-विरया पुण हुँति तत्थेव
॥ २५५ ॥ जे पुण मिच्छदिट्ठी, अविरइ विरई इ ते अधम्मम्मि । जम्हा तेर्सि किंचिवि, न सव्वहा अस्थि सुयधम्मो ॥२५६॥ जे पुण सम्मदिट्ठी, सव्वविरया य अविरया चेव । विरयाऽविरया य तहा, सव्वे ते धम्म पक्खम्मि चरित्तधम्म पणिहायमीसो, जो निच्छएणं ववहारओ वा। तं पक्खमायाय मुणी विसुद्धो, न संधए नो हु निराकरेज्जा।। २५८ ॥ अधम्म पडिसेहेइ, धम्मपक्खं च संधए।। तिण्ह धम्म पक्खाणं, एसा य वियारणा सुत्ते एएण कारणेणं, सावज्जलवो वि नत्थि उस्सग्गो । अववाए विहु करणे, सावज्जस्सेह नत्थि विही ॥ २६० ॥ छउमत्थाणं कत्थ वि, अववाउ दंसिउ जिणंदेहिं। कहमवि सयमुप्पज्जइ, जहट्ठिउ जोय जारिसओ ॥२६१ ।। तत्थ य जो निरवज्जो, सो जिण वयणाणुसारओ नेओ। विहिउवएसो तस्स य, इयरो य जहट्ठिउ होइ ॥ २६२ ।। जो य चरियाणुवाउ, सोवि तिहाऽधम्म धम्म मीसो य । तत्थ वि साहुवएसो, पुव्विं भणिओ तहा नेऊ ॥२६३ ॥ छटुं च पंचमंगे, वित्तीए अभयदेवसूरीहि । दोवहि संखहिगारे, भणियं तं चेव नायव्वं
॥ २६४॥ एवं तिण्णुवएसा, विहिचरिय जहट्ठिया समक्खाया। ववहार निच्छएहिं, आदेयनेयहेया य
॥ २६५ ॥ धम्माधम्म वि मीसा, तिण्णि य पक्खा वियाहिया एवं । एकारस ठाणाई, सुगुरुमुहाउ अ नायाई
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