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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सावय उवहाणविही, महानिसीहम्मि अत्थि जा भणिया । तं केई मतिय, केई बहुआ न मण्णंति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवस्सग अट्ठदिणो- वहाण किरिया जईण सव्वेसिं । पढम-चरित्तधराणं, सुपमाणं गच्छवासीणं आवस्सगस्स अण्णो, उवहाण-विही न दीसई को वि। जं आयरिया तु सदा, कुणंति सिक्खं निरइयारं पाई पडणं वावि, दाहिणोदीणमेवय । सुद्धमुणी विहरंतो, सुद्धं धम्मं वियागरे अहिंसा लक्खणोम्मो, जिणंदेहि पवेइओ । ववहार - निच्छएहिं, उस्सग्गा अववायओ विहिवा उवएसम्मि, नत्थि सावज्जमागमे । अववाए विही नत्थि, उवएसा जहट्ठिओ उस्सगो अस्थि विही, अईयणं ताण जिणवरिंदाणं । तह आगमिस्साण पुणो, संक्खाणं वट्टमाणाणं एसो जिणउवएसो, विहिवारणं मुणीणं । सो चेव मुणिवरेहि, सद्दहियव्वो पयत्तेणं बीयंगे सूयगडे, बीयखंधम्मि बीयअज्झयणे । पक्खा तिण्णि य भणिया, धम्णाऽधम्मा य मीसा य पक्खाण तिणि दोसुं, अवयारो धम्णऽधम्म पक्खेसु । सम्मदिट्ठी पढमे, मिच्छदिट्टी य बीयम्मि अविरय मिच्छदिट्ठी, एगंतेणं अहम्मपक्खम्मि । सुयधम्म चरित्ताणं, तेसिं पि य नत्थि इक्को वि सम्मदिट्टी विरया, दुहउविय हुति धम्मपक्खम्मि । अविरय सम्मदिट्ठी, सम्मं पणिहाय धम्मम्मि ૧૨૨ For Private And Personal Use Only ॥ २४३ ॥ ।। २४४ ॥ ॥ २४५ ॥ ॥ २४६ ॥ ॥ २४७ ॥ ।। २४८ ॥ ॥ २४९ ॥ ॥ २५० ॥ ।। २५१ ॥ ।। २५२ ॥ ॥ २५३ ॥ ॥ २५४ ॥
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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