________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देवीणं थुइ करणे, इह लोगट्ठो य दीसइ पयडो। पभणंति जओ पाढं, नहु वंदणवत्तियाए त्ति
॥ १५९॥ तवमज्झठि उस्सगो, भुज्जो चिंतिज्जए नमुक्कारो। अरिहंताई पंच य, जिणसमए वंदणिज्जा य
॥ १६०॥ दसवेयालियसुत्ते, इह लोगट्ठा तवं च पडिसिद्धं ।। नवमम्मि य अज्झयणे, नेयव्वं तत्थ पयडत्थं ॥१६१ ॥ आवस्सय ठाणांगे, समवायंगम्मि पण्णवागरणे। उत्तरअज्झयणम्मि य, इहलोगट्ठा तव निसेहो ॥१६२ ।। इग-वासर-परियाउ, वाससय-दिक्खियं बहुसुयं पि । वंदिज्जा नहु अज्जं, साहु बालो अगी(अत्थ) उवि ॥१६३ ॥ विरइधरं गुणनिलयं, नहु वंदइ सावियं पि ववहारा । ता अविरय देवीउ, कहेह साहू कहं वंदे
॥ १६४ ॥ देवीथुइ आयरणा, एएण य कारणेण नहु सुद्धा। आयरण लक्खणेण वि, नहु जुज्जइ जेण भणियमिणं ॥१६५ ॥ तत्थ य जिणपडिसिद्धं, पडिसिद्ध-विहाणमेव सावज्ज। लक्खण-विरुद्धमेयं आयरणं कहमिह पमाणं ॥१६६ ॥ क्खित्तावग्गहकज्जे, क्खित्तसुरी-संथवं करंताणं। साहूण वसहिदोसो, उप्पायणए इगारसमो
॥१६७ ॥ इह जा सुत्तविरुद्धा सच्छंदमईइ - कप्पिया जो य । गीयत्थेहिं कहिज्झइ, सा नहु किज्जइ मए नूणं ॥१६८ ॥ इय निज्जुत्ति बलेण, पक्ख-चउम्मास, वरिस-पडिक्कमणं । देवसियं च करिज्जइ, उस्सग्गा जीयकप्पाओ ॥१६९ ॥ दिवसे सयमूसासा, राईए तेय हुंति पण्णासं । पक्खम्मि य तिण्णिसया, चाउम्मासं पि पंचसया ॥१७० ॥
૧૧૫
For Private And Personal Use Only