________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिणवयणं अलहंता जीवा पावंति तिक्खदुक्खाई। लहिऊणं संपमत्ता ताणं चिय घोरसंसारो
॥ १०१॥ गयपारे संसारे आणानिहीणा अणंतसो कालं। न लहंति बोहिलाभं लहिऊणं केवि हारंति
॥ १०२ ॥ किव्वतणेण कोइ दोसे पयडेइ साहुसंघाणं । जंपइं अवण्णवायं संगं न करे सुसाहुणं
॥ १०३॥ दुट्ठा सुसाहु निंदा इह परलोए वी दुट्ठदारिदा । पइजम्मं विग्घकरि सुपक्खा चायेण दट्ठव्वा ॥ १०४॥ दुह्रत्तणेण पिसुणत्तणेण दुब्वियड्डकोहबहुलेण। हारंति बोहिलाभं कीडपयंगा य जायंति
॥ १०५ ॥ पिट्ठिमंसे रसिआ जलसप्पिणीपमुहारुहिरसोसाय । वालय मिज्झा किमिआ जायंति अ दुब्भि गंधिल्ला ||१०६ ॥ टूटा मुंगा अंधा दारिदा घोर दुक्खबाहुल्ला । सूला भिण्ण सरीरा साहु असाहूण निदाए
॥ १०७॥ पर वंचणेण रत्ता परापवाएण अप्पसंसणया। ताणं कत्तो बोहि परमप्पाणया च बोलेइ
॥ १०८॥ ठाणअंगे भणियं पंचण्हमवण्णवायबहुलेण । दुल्लह बोहियभावं लहंति जीवा य णिच्चं पि ॥ १०९॥ एसि सुवण्णवाए जीवा पावंति सुलहबोहित्तं । जह मगहाहिव कण्होइ एहिं लद्धं खू सम्मत्तं ॥११० ॥ धम्मा जयंतु वंतो ललिअंगकुसुमरुव्व लहइ बोहिफलं। बहुवितरवालिओ विहु भीमकुमारुव्व जायंति ॥१११ ॥ धम्मिल्ल दामनणइया सत्तेण अगडदत्तनरवइणो । समया एव वदंतो मुणिवइ मेयारिउ जाण
॥ ११२॥
3४४
For Private And Personal Use Only