________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ ८९॥
॥ ९०॥
॥ ९१ ।।
॥ ९२ ॥
॥ ९३॥
॥ ९४ ॥
णाणं नरस्स सारं सारं णाणस्स सुद्धसमत्तं । सम्मत्तसारचरणं सारं चरणस्स निव्वाणं दाणं वसणं लिद्धं सीलं रंकुव्व पालणं अहलं । जरदाहुव्व तवाइ झाणं दुक्खे नीयाणं च कुग्गहगहगहिआणं सुतित्थजत्ता य चित्तभमणुव्व । भमणुव्व भावणाओ दंसणभट्टेण जाणेण चंदणपवणपणुल्लिय परिमल रसिआ वरेवि चंदणया। चंपक कुसुम सुगंधिया तिल्लाओ होइ चंपिल्लो साइज्जलं सुइसप्पे पडियं मुत्ताहलं च हालहलं । सप्पमुहेवरघुसिणं कंदलिदलमज्जसंपत्तं चंदणलट्ठभुअंगा विसं न मिल्लंति तस्स किं दोसा । इत्थुगे कि चंदं खार ते नेव मिलहेइ मियमदगंधे लसणं न चाइयइ विअप्पणो गंधं । रविकरपसरंतेहिं अंधत्तं होइ उल्लुआणं एगूअर समुपण्णा सहजाया अ सह वट्टिअ सरीरा । न वि हुंति य समसीला कक्कंदू कंटसमतुल्ला एवं परोवयारो साहु असाहूण संगमारुढो । सेवासंगाइफलं कुपत्तपताणुसारेण किं कारमणि निउत्तो वेरूलियो कि हवेइ कारयमणा। कसवट्टएहिं घसियं कि कणयं होइ मसिवण्णं लभइ विमाणवासो लभइ लीलाय वत्तिया लच्छी । इह आहरियं न लभइ दुल्लहरयणुव्व समत्तं संजमरहियं लिंगं दंसणभटुं न संजमं भणियं । आणाहिणं धम्मं निरत्थयं होइ सव्वं पि
| ९५ ॥
॥ ९६ ॥
॥ ९७ ॥
॥ ९८ ॥
॥ ९९ ॥
॥ १०० ॥
383
For Private And Personal Use Only