________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ १७ ॥
॥ १८॥
॥१९॥
॥ २०॥
॥ २१ ॥
॥ २२ ॥
राय करंडर गिहीवइ करंड तुल्लेहिं जाय सुग्गहिया । भावपरंपर सुद्धा सोहम्माओ वि जिणआणा संघयणबुद्धियबलं तुच्छं नाऊण सुविहिय जणाणं । गीयत्थेहि चिण्णा तवाइकालेसु आयरणा जं जीयं सोहीकरं संविग्गपरायणेण दंतेणं । इक्केण वि य आयरियं तेणइ जीएण ववहारो असढेण समाइण्णं जं कत्थइ केणइ असावज्जं । न निवारियमण्णेहिं बहुगुणमणुमेअ आयरियं आवस्सयाइ करणं इच्छामिच्छाइ दस विहायरणं । चिइवंदणपडिलेहणं संवच्छरपव्वपव्वतिहि उदयतिविहणं ठवणाविणयाइ सुसाहु माणणा दाणं । इत्थ वि किं आयरणा बल बुद्धि काविहावेइ अणुओगदार सुत्ते लोगुत्तरवस्सयं जिणवरेहि । आणाए अणुचिण्णं मुक्खफलं होइ भव्वाणं आणाए अणुचिण्णावस्सयकालम्मि समणसंघेहि । लोउत्तरीया ठविआ परंपरा वियरागेहिं जं किंचि अणुट्ठाणं जिणेंद आणाए बहुफलं होइ । जह वडतरुव्व बीयं वित्थारं लहइ वुटुंते केण विरण्णा रंको भज्जा वयणेण कारिओ धणवं। सोवि य तस्सुत्तिभत्तो पहाण पुरिसो कओ जत्ति तस्स वि सव्वं भालिय राया साहेइ सव्वदेसाय । अंतेउर रंगिल्लो आणाभंगं न याणेइ कुसलेण घरं पत्तो राया जाणेइ तस्स चरियाइ। सुविडंबीऊण सहसा खंडाखंडि कओ सिग्धं
॥ २३ ॥
॥ २४ ॥
॥ २५ ॥
॥ २६ ॥
।। २७॥
॥ २८॥
330
For Private And Personal Use Only