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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पुढविदगअगणिमारूअ - वणस्सइ तह तसाण विविहाणं । मरते विन पीडा, कीरइ मणसा तयं गच्छं मूलगुणेहिं विमुकं, बहुगुणकलियं पि लद्धिसंपण्णं । उत्तमकुले वि जायं, निद्धाडिज्जइ तयं गच्छं जत्थ य उहादीणं, तित्थयराणं सुरिंदमहियाणं । कम्मट्ठविमुक्काणं, आणं न खलिज्जइ स गच्छो जत्थ य अज्जाहिं समं, थेरा वि न उल्लवंति गयदसणा । न य ज्ञायंति त्थीणं, अंगोवंगाइ तं गच्छं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वज्जेइ अप्पमत्तो, अज्जासंसग्गि अग्गिविससरिसी । अज्जाणुचरो साहू, लहइ अकित्ति खु अचिरेणं जो देइ कणयकोडि, अहवा कारेइ कणयजिणभवणं । तस्स न तत्तिय पुण्णं, जत्तिय बंभव्वए धरिए सीलं कुलआहरणं, सीलं रूवं च उत्तमं होइ । सीलं चिय पंडितं, सीलं चिय निरुवमं धम्मं वरं वाही वरं मच्चू, वरं दारिद्दसंगमो । वरं अरण्णवासो अ, मा कुमित्ताण संगमो अगीयत्थकुसीलेहि, संगं तिविहेण वोसिरे । मुक्खमग्गंमिमे विग्धं, पहम्मि तेणगे जहा उम्मग्गदेसणाए, चरणं नासंति जिणवरिंदाणं । वावण्णदंसणा खलु, न हु लब्भा तारिसं दठ्ठे परिवारपूअहेऊ, ओसण्णाणं च आणुवित्तीए । चरणकरणं निगूहई, तं दुल्लहबोहिअं जाण अंबरस य निंबस्स य, दुण्हं पि समागयाई मूलाई । संसग्गेण विणट्टो, अंबो निबत्तणं पत्तो ३२८ For Private And Personal Use Only ॥ ५१ ॥ ॥ ५२ ॥ ॥ ५३ ॥ ॥ ५४ ॥ ॥ ५५ ॥ ॥ ५६ ॥ ॥ ५७ ॥ ॥ ५८ ॥ ॥ ५९ ॥ ॥ ६० ॥ ॥ ६१ ॥ ॥ ६२ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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