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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किइकम्मं च पसंसा, सुहसीलजणम्मि कम्मबंधाय । जे जे पमायठाणा, ते ते उववूहिया हुंति ॥ १५ ॥ एवं णाऊण संसग्गिं, दंसणालावसंथवं । संवासं च हियाकंखी, सव्वोवाएहिं वज्जए ॥ १६॥ अहिगिलइ गलइ उअरं, अहवा पच्चुग्गलंति नयणाई। हा ! विसमा कज्जगई, अहिणा छच्छंदरि गहिआ ॥१७॥ को चक्कवट्टिरिद्धि, चइडं दासत्तणं समभिलसइ । को व रयणाई मुत्तुं, परिगिण्हइ उवलखंडाई ॥१८॥ नेरइयाण वि दुक्खं, झिज्झइ कालेण किं पुण नराणं। ता न चिरं तुह होई, दुक्खमिणं मा समुव्वियसु ॥१९॥ वरमग्गिम्मि पवेसो, वरं विसुद्धेण कम्म (म्मु) णा मरणं । मा गहियव्वयभंगो, मा जीअं खलिअसीलस्स ॥ २० ॥ अरिहं देवो गुरूणो, सुसाहुणो जिणमयं मह पमाणं । इच्चाइ सुहो भावो, सम्मत्तं बिति जगगुरूणो ॥ २१ ॥ लब्भइ सुरसामित्तं, लब्भइ पहुअत्तणं न संदेहो। एगं नवरि न लब्भइ, दुल्लहरयणं व सम्मत्तं ॥ २२॥ सम्मत्तम्मि उ लद्धे, विमाणवज्जं न बंधए आउं । जइवि न सम्मत्तजढो, अहव न बद्धाउओ पुविं ॥ २३ ॥ दिवसे दिवसे लक्खं, देइ सुवण्णस्स खंडियं एगो। एगो पुण सामाइयं, करेइ न पहुप्पए तस्स निंदपसंसासु समो, समो य माणावमाणकारीसु । समसयणपरियणमणो, सामाइयसंगओ जीवो ।। २५ ।। सामाइयं तु काउं, गिहिकज्जं जो य चितए सड्ढो । अट्टवसट्टोवगओ, निरत्थयं तस्स सामा(म) इयं ।। २६ ॥ || २४ ॥ ૩૨૬ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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