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जे चिइवंदणि वंदणई - पडिकमणइ उज्जुत्त | ते नियकुल सरवर कमल, सुस्सावय सुपुत्त
- पूणि मुणि-नमणि, निच्चु पयच्चु करेंति । ते कल्ला निहाण फुडु, लहु पव्वज्ज धरेंति जे विज्जंतई घणि दविणि, वियरहिं पत्ति न दाणु । fire दुहिह दुत्थिय [ह], तह कर्हि भवि सम्माणु निम्मलु सोलु न पालियउ, दमिय न करण तुरंग । मण मगलु नो वसिय कयउ, किह वुण्णइ नीसंगु सत्ति न गूहइ मिस करइ, चरइ न तवु समुद्रु । दुखड्ड उडि णु फुडु अप्पा छुट्टु
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जिण संसिउ निच्चुवि करहि सम धम्मिय वच्छल्ल। सासण सार मुदार मणु, जिम्व होयहि नीसल्ल जण जिण पवयण मइलियइ, जं निय कुलह विरद्ध । तं मा काहिसि जिम होयहि, कम्म विसुज्जु विसुद्ध
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॥ ९५ ॥
॥ ९६ ॥
॥ ९७ ॥
॥ ९८ ॥
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॥ १०० ॥
जह बुत्तिवि मणि तुल्ल गुण, सुसमण लिंगिय मुंड । तह फुडु जड चूडामणि, हंस न कथूर [? कथइ] मुरण्डा ॥ १०२ ॥ जे पावेविणु जिण वयण, उस्सुत्तई भाति । ते पाविवि चितारयणु, [ खंडो] खंडि करंति जो चितामणि पत्थरह, सुरतरु विस रुक्खाण । सो अन्तर बुह वज्जरहिं, सुसमण लिंग-धराण जो अवगण्णिवि मुणि रयण, लिंग सुभत्ति करेइ । सो छंडेविणु अमय रसु, हालाहलु चक्खेइ कोह दवानल उल्हवहु, समय मेय पूरेण । भव संतावु...[व] समु जिम्व, मुसुसु सूरहु दूरेण
॥ १०१ ॥
॥ १०३ ॥
॥ १०४ ॥
॥ १०५ ॥
॥ १०६ ॥