________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
धिइ मइ कित्तिवि दूरि चइज्जहि ता धम्मिय तर्हि मा सज्जिज्झहिं
तामु न सच्चु न सोउ न संजमु सीलु न विज्ज न न इंदिय दमु
|
तिण अप्पउं कि विरु दुग्गइ छूढउ जा पण रमणि रमइ अइ मूढउ जा जालोय जिम्व गेहहु देहह देविणु रुहिरु आकड्ढइ बहुलहु । सुकुमारत्तणु पयड़वि गुण गणु जीवहु सा किम्व रंजनु बुहमणु आवय आठहि जहि आसत्तह पसरइ अजसु तिलोई असत्तह । सव्वत्थ विरह गरह पयट्टइ । तहिं वेसहिं किंव रागु विसट्टइ दुवियड्ढि ..... (?य चुंबि) य नड भंडहिं नयणिहि अकत्थहि जे रंडहिं । नीलुप्पल सूमाले... (हिं गालेहि) ते विसूर वणिजहि बालेहि राउन जसु मयरद्धय रूविवि कुट्ठिवि, तोसइ धणई निरूविवि ।
सग्ग पवग्गण वग्गह अग्गल
वेस स ढोपर दुह सय अग्गल सिरि हिरि कंति धिइ मइ कित्ती दंति संति दय सज्जण मत्ती ।
२३४
For Private And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ ६९ ॥
॥ ७० ॥
॥ ७१ ॥
॥ ७२ ॥
॥ ७३ ॥
।। ७४ ।।