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इह जे जिणवीरेणं सयं च पव्वाविया य सिक्खविया। तेहि कयाई चउदस-सहसाणि पइण्णगाणं च
॥१६॥ दसवेयालिय-मावस्सयं च तह ओह-पिंड-निज्जुत्तिं । पज्जुसण-कप्पयकप्प कप्प पणकप्प जियकप्पो ।। १७ ।। वंदे महानिसीहं उत्तरज्झयणे वायगकयाणि । पसमरइ-पमुह-पयरण पंचसयाई महत्थाणि
।। १८ ॥ जुगपवरागम हरिभद्दसूरि रइयाणि चउदस-सयाणि । सद्धम्म-सत्थमत्थय-मणिपयरण-पभिइ चित्ताणि ॥ १९ ॥ नंदि-मणुओगदरप्प सुहं सुत्तमित्थ सुमहत्थं । अत्थि सुपसत्थ वित्थर भणण समत्थं पसत्थं च || २० ॥ आसज्जतं मणवज्जं जुगपहाणागमेहि सूरिहि । गुणगणभूरीहिं कयं वंदे तं पयरणाई वि
॥ २१ ॥ जुगपवर-गुरु-जिणेसरसूरीहिं अभयदेवसूरीहिं । सिरिजिणवल्लहसूरीहिं विरइयं जमिह तं वंदे
॥ २२॥ कलिकाल-कुमुइणी-वणसंकोयणकारि सूर-किरणव्व । इह सुत्तासुत्तपया व भासणुल्लासिणो जेसिं
॥ २३॥ ठाणट्ठाण-ट्ठियमग्ग नासि संदेहि मोहतिमिरहरा । कुग्गहिवग्गकोसियकुलकवलिय लोयणालोया ॥ २४॥ तेहिं पभासियं जं तं विहडइ नेय घडइ जुत्तीए। वंदे सुत्तं सुत्ताणुसारि संसारिभयहरणं
॥ २५ ॥ गुरु-गयणयल-पसाहण-पत्त पहो पयडिया समदि सोहो। हय सिवपह-संदेहो कय भव्वंभोरुहविबोहो
॥ २६॥ सूरूव्वसूरि जिणवल्लहो य जाउजए जुगपवरो । जिणदत्त-गणहर-पयंत-प्पय पणयाण होई फुडं
॥ २७ ॥
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