________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ण य तस्स थोवयाए जेण अणुण्णा तओ तओ दुट्ठा । णिद्दव्व दुट्ठया जं णिद्दाइ पसंगओ तस्स
।। १०८॥ आहारो ण पमाओ भण्णइ अववाइओ त्ति काऊणं । अववाया वोलीणा वीयभयाणं जिणाण जओ ॥१०९॥ पत्तं ममत्तहेऊ जुत्तं वोत्तुं पुणो ण देहु व्व। इहरा णिम्ममभावो जिणाण कह पाणिपत्ताणं ॥११० ॥ झाणतवोवाघाओ आहारेणं ति ते मई मिच्छा। झाणं सेलेसीए तवो अ ण विसिस्सते सिं ति ॥ १११ ॥
ओरालिअदेहस्स य ठिई अ वुड्डी य णो विणाहारं । तेणावि य केवलिणो कवलाहारित्तणं जुत्तं ॥ ११२ ॥ परमोरालिअदेहो केवलिणं नणु हवेज्ज मोहखए। रुहिराइधाउरहिओ तेअमओ अब्भपडलं व
॥ ११३ ॥ संघयणणामपगइ केवलिदेहस्स धाउरहिअत्ते । पोग्गलविवागिणी कह अतारिसे पोग्गले होउ ॥ ११४ ॥ मोहविलएण नाणं णामुदया चेव तस्स पारम्मं । तो वण्णाइविसेसो तं होउ ण धाउरहिअत्तं
॥ ११५ ॥ ओरालिअत्तणेणं तह परमोरालि पि केवलिणो। कवलाहारावेक्खं ठिइं च वुड्डिं च पाउणइ
॥ ११६॥ ण य मइणाणपसत्ती कवलाहारेण होइ केवलिणो। पुष्फाईअं विसयं अण्णह घाणाइ गिव्हिज्जा ॥११७ ।। इरिआवहिआ किरिया कवलाहारेण जइ णु केवलिणो। गमणाइणा वि ण हवे सा किं तुह पाणिपिहिअ त्ति ॥११८ ।। ण य परुवयारहाणी तेण सया जोग्गसमयणियएण। ण य वाहिसमुप्पत्ती हिअमिअआहारगहणाउ ॥ ११९ ॥
૧૦.
For Private And Personal Use Only