________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥१२॥
॥१३॥
|॥ १५ ॥
।। १६ ॥
बारस-वास-सएहि, सड्ढेहि निव्वुयम्मि वीरम्मि। चेइय-मढ-आवासो, पकप्पिओ सायसीलेहि अण्णे उ अहच्छंदा, गिहिवासे वि हुँति समइ वसा। गीयत्थाणा बज्झा, दुक्कर-किरिया-रया निच्चं संकिय-सुत्तत्थ-विचार-कारया पारतंत-विहि-रहिया । सपरेसि हुँति जमसंख-दुक्खलक्खाण संजणया चीवासिणुव्व सच्छंद-चारिणो सुत्तभासिणो वि इमे। होंति इहाभिग्गह-मिच्छदिट्ठिणो चरणगुण-हीणा सड्डेहिं गुणड्डेहिं साहूहि सुद्ध-दसणत्थेहिं । अहमाहमत्ति काउं, दट्ठव्वा ते न पुट्ठव्वा एत्तो वि हु पावयरो, अण्णो नो विज्जए जए कोवि । रिसि-माहण-गो-भूणंतगो वि बहुकम्मकारो वि अयराण कोडकोडी, भमिओ मरिउं भवम्मि जं भीमे। उस्सुत्त-लेस-देसण-जणिओ सो खलु कडुविवागो इत्थं चायरियाणं, पणपण्णं हु कोडि लक्खाउ । कोडिसहस्से कोडि-सयए य तह एत्तिए चेव एएसि मज्झाओ, एगे निव्वडइ गुणगणाइण्णो । सव्वुत्तमभंगेणं, तित्थयरस्साणुसरिसगुरु दुप्पसहो जा साहू, होहिति जुगप्पहाण आयरिया । अज्ज सुहम्मप्पभिइ, चउरहिया दुण्णिउ सहस्सा सो चंदवयण-मोदय-वयण सृरिसत्तमो व सेसाई। तं तह आराहेज्जा जइ तित्थयरे य चउवीसं
अणुसोयच्चाएणं, पडिसाएणं तु वट्टए सम्म । . गड्डरिपवाहपडिए तिविहं तिविहेण वज्जेह
1॥१८॥
॥ १९ ॥
।। २० ॥
॥ २१॥
॥ २२॥
|| २३॥
૧૫૨
For Private And Personal Use Only