________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ ८१ ॥
॥ ८२ ॥
।। ८३ ॥
।।८४ ।।
॥ ८५ ॥
॥ ८६॥
मण्णिज्ज चरणधम्म मा गविज्जा गुणेहि नियएहि । न य विम्हओ वहिज्जइ बहुरयणा जेण महपुढवी मा वहउ कोइ गव्वं इत्थ जए पंडिओ अहं चेव । आसव्वण्णुमयाओ तरतमजोगेण मइविहवा भत्तीसु अभत्तीसु य गुरुनिण्हवणे य इत्थ दिटुंता । सिरिइंदभूइ - मंखलिपुत्तोरगसूयरो य तहा गुरुनिण्हवणे विज्जा गहिया वि बहुज्जमेण पुरिसाणं । जायइ अणत्थहेऊ रयनेउरपवरमल्लुव्व विणओवयार माणस्स भंजणा पूयणा गुरुजणस्स। तित्थयराणं आणा सुयधम्माराहणा किरिया एए छच्चेव गुणा साहूणं वंदणे पुण हवंति । सग्गाऽपवग्गसुक्खं पएसिराउव्व लहइ जणो एगो जाणइ भासइ बहुयपयं किंतु एगमुस्सुत्तं । एगो एगंतं पि हु सुद्धं जह छलुय मासतुसो एगे उस्सुयवयणे जंपिए जं हवेइ बहु पावं । तं सयजीहो वि नरो न तीरए कहिउ वाससए पढममिह मुसावायं दिट्ठीरागं तहेव मिच्छत्तं । आणाभंगं माणं परओ माया वि मेरुसमा सम्मत्तचरणभेओ तस्स य वयणेण होइ संघम्मि। कलहो वि तओ जायइ अप्पा उ अणंतसंसारी जे पुण पढंति सुत्तं छज्जीवणियाओ सावया उवरिं। सो तेसिमयणायारो चउद्दसपुचीहिं जं भणियं सिक्खाविय साहुविहा उववायगई ठिई कसाया य । बंधता वेयंता पडिवज्जाइक्कमे पंच
11 ८७॥
|| ८८।।
॥ ८९ ॥
॥ ९० ॥
॥ ९१ ॥
॥ ९२ ॥
૧૨૫
For Private And Personal Use Only