SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [31:१-३१ पद्मनन्दि-पञ्चविंशतिः 31 ) धूताद्धर्मसुतः पलादिह बको मद्याद्यदोर्नन्दनाः चारुः कामुकया मृगान्तकतया स ब्रह्मदत्तो नृपः। चौर्यत्वाच्छिवभूतिरन्यवनितादोषाद्दशास्यो हठात् एकैकव्यसनाहता इति जनाः सर्वैर्न को नश्यति ॥ ३१ ॥ एकव्यसनेन पीडिताः जनाः दुःखिता जाताः । सर्वैर्व्यसमैः कः पुमान न नश्यति । अपि तु नश्यति । द्यूतात् धर्मसुतः युधिष्ठरः नष्टः। पलात् मांसात् बको नाम राजा नष्टः । मद्यात्सुरापानात् यदोः नन्दनाः नष्टाः । चारुः चारुदत्तः कामुकया वेश्यया नष्टः । स ब्रह्मदत्तः नृपः मृगान्तकतया अहेटकवृत्त्या नष्टः । चौर्यत्वात् शिवभूतिर्ब्राह्मणः नष्टः । अन्यवनितादोषात् परस्त्रीसङ्गात् दशास्यः रावणः नष्टः । तत्र सर्वैः व्यसनैः कः न नश्यति ॥ ३१ ॥ परं केवलम् । व्यसनानि इयन्ति न भवन्ति । अपराण्यपि अभिप्राय यह है कि यदि उपर्युक्त सामग्रीके होनेपर लोगोंका मन लोकमर्यादाको छोड़कर परधन और परस्त्रीमें आसक्त होता है तो वह सब सामग्री धिक्कारके योग्य है ॥ ३० ॥ यहां जुआसे युधिष्ठिर, मांससे बक राजा, मद्यसे यादव जन, वेश्यासेवनसे चारुदत्त, मृगोंके विनाश रूप शिकारसे ब्रह्मदत्त राजा, चोरीसे शिवभूति ब्राह्मण तथा परस्त्रीदोषसे रावण; इस प्रकार एक एक व्यसनके सेवनसे ये सातों जन महान् कष्टको प्राप्त हुए हैं। फिर भला जो सभी व्यसनोंका सेवन करता है उसका विनाश क्यों न होगा ? अवश्य होगा। विशेषार्थ – 'यत् पुंसः श्रेयसः व्यस्यति तत् व्यसनम्' अर्थात् जो पुरुषोंको कल्याणके मार्गसे भ्रष्ट करके दुःखको प्राप्त कराता है उसे व्यसन कहा जाता है। ऐसे व्यसन मुख्य रूपसे सात हैं। उनका वर्णन पूर्वमें किया जा चुका है। इनमेंसे केवल एक एक व्यसनमें ही तत्पर रहनेसे जिन युधिष्ठिर आदिने महान् कष्ट पाया है उनके नामोंका निर्देश मात्र यहां किया गया है । संक्षेपमें उनके कथानक इस प्रकार हैं । १ युधिष्ठिरहस्तिनापुरमें धृतराज नामका एक प्रसिद्ध राजा था। उसके अम्बिका, अम्बालिका और अम्बा नामकी तीन रानियां थीं। इनमेंसे अम्बिकासे धृतराष्ट्र , अम्बालिकासे पाण्डु और अम्बासे विदुर उत्पन्न हुए थे। इनमें धृतराष्ट्रके दुर्योधन आदि सौ पुत्र तथा पाण्डुके युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव नामक पांच पुत्र थे । पाण्डु राजाके स्वर्गस्थ होनेपर कौरवों और पाण्डवोंमें राज्यके निमित्तसे परस्पर विवाद होने लगा था । एक समय युधिष्ठिर दुर्योधनके साथ द्यूतक्रीडा करनेमें उद्यत हुए। वे उसमें समस्त सम्पत्ति हार गये । अन्तमें उन्होंने द्रौपदी आदिको भी दावपर रख दिया और दुर्योधनने इन्हें भी जीत लिया। इससे द्रौपदीको अपमानित होना पड़ा तथा कुन्ती और द्रौपदीके साथ पांचों भाइयोंको बारह वर्ष तक वनवास भी करना पड़ा। इसके अतिरिक्त उन्हें द्यूतव्यसनके निमित्तसे और भी अनेक दुःख सहने पड़े। २ बकराजा-कुशाग्रपुरमें भूपाल नामका एक राजा था। उसकी पत्नीका नाम लक्ष्मीमती था। इनके बक नामका एक पुत्र था जो मांसभक्षणका बहुत लोलुपी था। राजा प्रतिवर्ष अष्टाह्निक पर्वके प्राप्त होनेपर जीवहिंसा न करनेकी घोषणा कराता था। उसने मांसभक्षी अपने पुत्रकी प्रार्थनापर केवल एक प्राणीकी हिंसाकी छूट देकर उसे मी द्वितीयादि प्राणियोंकी हिंसा न करनेका नियम कराया था। तदनुसार ही उसने अपनी प्रवृत्ति चालू कर रखी थी। एक समय रसोइया मांसको रखकर कार्यवश कहीं बाहर चला गया था। इसी बीच एक बिल्ली उस मांसको खा गई थी। रसोइयेको इससे बड़ी चिन्ता हुई । वह व्याकुल होकर मांसकी खोजमें नगरसे बाहिर गया। उसने एक मृत बालकको जमीनमें गाढ़ते हुए देखा । अवसर पाकर वह उसे निकाल लाया और उसका मांस पकाकर बक राजकुमारको खिला दिया। उस दिनका मांस उसे बहुत स्वादिष्ट लगा।
SR No.020961
Book TitlePadmanandi Panchvinshti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Siddhantshastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year2001
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy