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पअनन्दि-पश्चविंशतिः श्लोक
श्लोक पातिचतुकके मभावमें भघातिचतुष्ककी अवस्था २० सरस्वतीकी प्रसन्नताके विना तत्वनिश्चय नहीं होता " समवसरण और वहां स्थित जिनेन्द्रकी शोभा २१-२२ मोक्षपद सरस्वतीके आश्रयसे ही प्राप्त होता है १२-१५ भाठ प्रातिहायोंकी शोभा
२३-३. सरस्वतीकी भन्य भी महिमा
१४-२८ जिनवाणीकी महिमा
काम्यरचनामें सरस्वतीका प्रसाद ही काम करता है २९ मयोंका प्रभाव जिनेन्द्रकी स्तुतिमें वृहस्पति मादि भी असमर्थ हैं ३६
सरसतीके इस स्तोत्रके पढ़नेका फल ३० प्रभुके द्वारा प्रकाशित पथके पथिक निरुपद्रव
सरस्वतीके स्तवनमें असमर्थ होनेसे क्षमायाचना ! मोक्षका लाभ करते हैं मोक्षनिधिके सामने अन्य सब निधियां तुच्छ हैं ३८ १६. स्वयंभूस्तुति १-२४, पृ. २२७ जिनेन्द्रोक्त धर्मकी अन्य धर्मोसे विशेषता ३९-१० जिनके नख-केशोंकेन बढ़ने में प्रन्थकारकी कल्पना ४१
ऋषभावि महावीरान्त २४ तीर्थकरोंका गुणकीर्तन ,-२१ तीनों लोकोंके जन व इन्द्र के नेत्रों द्वारा जिनेन्द्रदर्शन
१७. सुप्रभाताष्टक १-८, पृ. २३३ देवों द्वारा प्रभुचरणोंके नीचे सुवर्णकमलोंकी घातिकमाको नष्ट करके स्थिर सुप्रभातको रचना
प्राप्त करनेवाले जिनेन्द्रोंको नमस्कार । मृगने चन्द्र (मृगांक) का आश्रय क्यों लिया ४५ कमका कमलमें नहीं, किन्तु जिनचरणों में रहती है ४६
| जिनके सुप्रभातके सवनकी प्रतिज्ञा जिनेन्द्र के देषियोंका अपराध खुदका है ४७ महंत परमेडीके सुप्रभातका स्वरूप जिनेन्द्रकी स्तुति और नमस्कारका प्रभाव ४८-५० व उसकी स्तुति ब्रह्मा विष्णु मादि नाम भापके ही हैं जिनेन्द्रकी महिमा
५२-५७
| १८. शान्तिनाथस्तोत्र १-९, पृ. २३७ जिनेन्द्रकी स्तुति शक्य नहीं है
५८-६० स्तुतिके मन्तमें जिनधरणोंके प्रसादकी प्रार्थना ११ । तीन छत्रादिरूप आठ प्रातिहार्योंके भाश्रयसे
भगवान् शान्तिनाथ तीर्थकरकी स्तुति १-८ १४. जिनदर्शनस्तवन १-३४, पृ. २१४ जिस स्तुतिको इन्द्रादि भी नहीं कर सकते हैं जिनदर्शनकी महिमा
१-३४ | उसे मैंने भक्तिवश किया है
४२-१३॥
१५. श्रुतदेवतास्तुति १-३१, पृ. २१९ | १९. जिनपूजाष्टक १-१०, पृ. २४० सरस्वतीके चरणकमल जयवन्त हो
| जल-चन्दनादि भाठ द्रव्योंसे पूजा व उसके फलसरस्वतीके प्रसादसे उसके स्तवनकी प्रतिज्ञा
का उल्लेख और भरनी असमर्थता
| पुष्पांजलिका देना सरस्वतीकी दीपकसे विशेषता
वीतराग जिनकी पूजा केवल भारमकल्याणके लिये सरस्वतीके मार्गकी विशेषता
| की जाती है सरस्वतीके प्रभावसे मोक्षपद भी शीघ्र प्राप्त हो
जाता है सरस्वतीके विमा ज्ञानकी प्राप्ति सम्भव नहीं
२०. करुणाष्टक
१-८, पृ. २४३ ८-९ सरस्वतीके विना प्राप्त मनुष्य पर्याय यों ही नष्ट
| अपने ऊपर दया करके जन्मपरम्परासे मुक्त हो जाती है
करनेकी प्रार्थना