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पणानुक्रमणिका
२७७ रविणो संतापयर २९, 710, विद्वन्मन्यतया सदस्य-1-111,111 | शुद्धं वागतिवति १-१५७, 157 रागद्वेषकृतैर्यथा ९-२६, 540 विधाय कर्मक्षयमात्म- १६-१६, 822 शुद्धाच्छुद्धमशुद्धं 11-16, 615 रागो यस्य न विद्यते १३, 3 विधाय मातः प्रथम १५-१२, 787 शृण्वनन्तकगोचरं ३-३८,290 राजत्यसौ शुचितरा १९-३, 850 | विनयश्च यथायोग्यं ६-२९, 425 श्रामण्यपुण्यतरुरुच्च- १-८३, 83 राजापि क्षणमावतो ३-४२, 294 विप्पडिवजह जो तुह १३-३४, 715 श्रीपद्मनन्दितगुणौष १९-१०, 857 मजरादिविकृतिर्न १०-२३, 570 | विभान्ति यस्याङ्गिनखा १६-१८, 824 श्रीवीरेण मम प्रसन्न ९-३१, 546
विमोहा मोक्षाय स्वहित १-१०२,102 | श्रुतपरिचितमनुभूतं ११-६, 603 लक्ष्मी व्याधमृगीमतीव-१-४४, 296 | वियलइ मोहणधूली १३-५०, 731 | श्रुतादिकेवल्यपि १५-४, 779 सक्ष्यीकृत्य सदात्मानं २२-८, 891 | विश्ववस्तुविधतिक्षम १०.५, 552 | श्रेयानृपो जयति २-३, 201 लक्ष्यन्ते जलराशयः ३-२२, 274 | विश्वं पश्यति वेत्ति शर्म ८-२०, 505 | श्रेयोऽभिधस्य नृपतेः २-२, 200 लन्धा श्रीरिह वान्छिता ३-४०, 292 | विस्तीर्णाखिलवस्तु- १८.७, 845 | श्वापि क्षितेरपि २.४१, 239 लब्धिपञ्चकसामग्री १-१२, 319 विस्मृतार्थपरिमार्गणं १०-१५, 562 कन्धे कथं कथमपीह १-१६८, 168 | विहलीकयपंचसरो १३-२७, 708 | सह हरिकयकण्णसुहो १३-४५, 726 लमध्वा जन्म कुले शुचौ ५-५, 392/ विहाय नूनं तृणवत् १६-२०,826 |
स एवामृतमार्गस्थः ४-१९, 326 लीलोद्वेलितवाहु- १८-८, 846 विहाय व्यामोहं १-१२३, 123 |
सकलपुरुषधर्मभ्रंश- १२१, 21 लोउत्तरा वि सा १३.२२, 703 | विहिताभ्यासा बहिरर्थ- ११-१५,612
सचक्षुरप्येष जन- १५.१५, 790 लोक एष बहुभाव- १०.४५, 592 वीतरागपथे स्वस्थः २२.९, 892 |
स चिय सुरणवियपया १३.८, 689 लोकस्य त्वं न कश्चित १-१११.141| वृक्षावृक्षामेवाण्डजा ३-१९,271
| स जयति गुरुगरीयान् ११-४, 601 लोकः सर्वोऽपि सर्वत्र ६-५४, 450 वेरग्गदिणे सहसा १३-१६, 697
स जयात जिनदवः१ -६,6 लोका गृहप्रियतमा- ३-५१, 306 | वेश्या स्यादनतस्तद- १२-१०, 669 |
सतताभ्यस्तभोगानां १-१५०, 150 लोकालोकमनन्तपर्यय ९-८,522 वैराग्यत्यागदारुद्वय- १-१०६, 106
सतां यदीयं वचनं १६-20, 816 कोका तसि
३-५३, 305 म्यवहारोऽभूतार्थो ११-९, 606
सति द्वितीये चिन्ता ११-३२, 629 म्यवहृतिरबोधजन ११-८, 605
सति सन्ति व्रतान्येव १-९२, 92 व्याख्या पुस्तकदानमुखत ७-१०, 468 वचनविरचितेवोत्पचते १-७९, 79
सत्पात्रदानजनितोबत- २-२०, 218 म्याख्या यत् क्रियते १.१.१, 101 वने पतत्यपि १-६३, 63
सत्पात्रेषु यथाशक्ति ६-३१, 427 म्याघेणाघ्रातकायस्य ६-४६,442 वनशिखिनि मृतोऽन्धः १७५, 75
सत्समाधिशश- १०-३३, 580 म्याधिनाङ्गमभिभूयते १०-२४, 571 वन्यास्त गुणिनस्त एव ८-२३, 508)
स स्वर्गः सुखरामणीयक १-१८०, 180 व्याधिस्तुदति शरीरं ११-२३, 620 वपुरादिपरित्यक्ते ११-३, 600
सदृग्बोधमयं विहाय २३-७, 901 म्यापी नैव शरीर एव १-१३७, 137 वपुराश्रितमिदमखिलं ११-२४, 621
सभागते किल विपक्ष २-२८, 226 वयमिह निजयूथभ्रष्ट १-४६, 46 |
सन्तः सर्वसुरासुरेन्द्र १.१२, 12 वर्ष हर्षमपाकरोतु २२-१३, 907 | शक्नोति कर्तुमिह कः २१-३, 868 | समप्यससिव विदा ११-५७, 654 वाचस्तस्य प्रमाण य इह १-१२४, 124 | शरीरादिवहिश्चिन्ता ४-५५, 362 सन्माल्यादि यदीय २५-१, 923 वाम्छन्स्येव सुखं तत्र ३-३६, 288 | शशिप्रभो वागमृतांशु १६-८, 814 सप्तैव नरकाणि स्युः ६-१२, 408 वाणी प्रमाणमिह २१-१३, 878 शश्वजन्मजरान्तका- १-१६५, 165 | समता सर्वभूतेषु ६-८, 404 वातम्याप्तसमुद्रवारि ९.१७, 531 | शश्वन्मोहमहान्धकार १-१३२, 132 |
समयस्थेषु वात्सल्यं ६-३६, 432 वातूल एष किमु किं ३-४७, 299 शान्ते कर्मण्युचित १-१३३, 133
समर्थोऽपि न यो दद्यात् ६-३४, 430 वासः शून्यमठे कचित् ५-४, 391 शास्त्रं जन्मतरुच्छेदि ४-४५, 352 समुद्रघोषाकृतिरहेति १५-१४, 789 विकल्पोर्मिभिरत्यक्तः ४-२६, 333 | शिष्याणामपहाय १-६१, 61 सम्यक्सुखबोधदृशां ११-१३, 610 विजु व घणे रंगे १३.१५, 696 | शुद्धबोधमयमस्ति १०-२७, 574 | सम्यग्दर्शनबोधवृत्त- २१-१, 866 विष्मूत्रक्रिमिसंकुले -110, 114 शुद्धं यदेव चैतन्यं ४-५२, 359 | सम्यग्दर्शनबोधवृत्ति १-७०, 70