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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरू वह है जो होश जताए, जामुक्त जाए, मार्ग दिखाए तुरन्त पकड़ लिया, इसलिये ध्यान रखना, यदि तुमने अपना होश जगाकर सिद्ध नहीं कर लिया तो तलवार से तो अपने हाथ धो ही बैठोगे, अपने राज्य पर भी अपना अधिकार नहीं रख सकोगे ।" For Private And Personal Use Only EZ ही दो पथिक इस कथा द्वारा हमें जो सन्देश मिलता है वह केवल इतना ही है कि जैसे ही हमारा स्वयं का होश जागृत होता है हमारे दूसरों के साथ जो सम्बन्ध है उनकी यथाता खुल कर सामने आ जाती है, कि कौन हमारा मित्र होकर भी शत्रु है तथा कौन ऐसा जो हमें, शत्रु दिखते हुये भी हमारे प्रति प्रेम में है । अपने होश को जगाने के पश्चात् ही हम अपने सम्बन्धियों के सम्बन्धों के स्त्रोतों पर पहुँच जाते हैं । कि फलाँ व्यक्ति के द्वारा हमारे प्रति इस प्रकार का निकृष्ट कार्य क्यों किया जाता है । जब हम इस प्रकार सम्बन्धों के कारणों तक पहुँच जाते हैं, तब हमें अपने आप ही इस दुनिया के आपसी रिस्तों के बीच घूमता हुआ चक्र समझ में आ जाता है । हम देखते हैं इस जीवन की अनजान सी डगर में अनायास मिलते हैं, और जिन्दगी भर वे फिर एक दूसरे से जुदा नहीं होते हैं, जबकि दो सगे भाई जिनका सम्बन्ध अपने माता-पिता के खून से बंधा होता है उनमें आपस में इतना भी प्यार नहीं होता जितना कि वे अपने पालतु कुत्ते से प्यार करते हैं । वे दोनों सगे भाई होते हुए भी एक दूसरे का विश्वास नहीं करते जबकि जिन्दगी के सफर में वे एक बिल्कुल अनजान अजनबी को अपनी जिन्दगी की डोर थमा देते हैं क्योंकि स्थाई सम्बन्ध वह नहीं होते जिन्हें हम अपनी माता के गर्भ से लाते है, जबकि इसके विपरीत जिन्दगी में सम्बन्ध के पौधों को हमें प्रेम के द्वारा सींच कर ही वृक्ष बनाना पड़ता है । इसी संदर्भ में यह भी बात ध्यान रखनी चाहिये कि हम प्रेम भी वहीं कर सकते हैं; जहाँ हमारे प्रति अनुकूल प्रेम की बह रही हो । तभी हम प्रेम के मामले में भटकन से बच सकेंगे किया गया प्रेम भी व्यर्थ ही हो जावेगा । इसलिये ध्यान रखें सफल लिये दूसरे की मानसिकता को हम पढ़ने की क्षमता होनी चाहिये । आदमी इस प्रेम के रास्ते पर आ गया तो ध्यान रखना वह प्रेम तो प्रेम के नाम पर धोखा अवश्य ही पा लेगा पुरुषों का है; क्योंकि प्रेम में दिमाग की तो पाँच हो जाते हैं जबकि दिमाग तो धारा हमारी तरफ अन्यथा बेहोशी में प्रेमी बनने के यदि बेहोश नहीं लेकिन । प्रेम का रास्ता तो बहुत ही चैतन्य चलती ही नहीं है । प्रेम में दो और दो कहता है कि नहीं दो और दो
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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