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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८० योग और साधना भक्त मुझे गुरू स्वीकार करे तो मुझे खुशी हो होगी, लेकिन मैं अपनी स्वीकृति तब दूँगा जब तुम मुझे अच्छी तरह जान लोगे, क्योंकि "गुरू कोर्ज जान और पानी पीजे छान" । उनकी इस बात पर मैंने प्रति प्रश्न किया कि "यह मैं कैसे जानू ? किसको गुरु बनाना है" इसके लिये उन्होंने कहा कि "पहले तुम स्वस्थ हो लो, खाना पीना शुरू करने के पश्चात तीन दिन बाद आकर मुझसे मिलो, तबही मैं तुम्हें कुछ कहूँगा; उससे पहले मैं कुछ नहीं कहूँगा ।" रात्रि हो चुकी थी । मजबूरन उस दिन खाना खाया, अगले तीन दिन बाद में उनके सामने फिर मोजूद था और उनसे कहा कि "मैं अब भी अपनी बात पर अटल हूँ और कृपया मुझे अपना शिष्य स्वीकार कीजिये ।" उन्होंने फिर से रास्ता निकाल लिया कि "एक महीने बाद मकर सक्रान्ति है उस दिन तुम्हें गुरू मन्त्र दूंगा ।" मैं बड़ा निराश हुआ, लेकिन और कोई चारा नहीं था । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समय के अन्तराल ने चित्त की दशा ही बदल दी । मकर सक्रान्ति को वह संस्कार पूर्ण हुआ लेकिन वह लग्न अब कहाँ थी ? फिर भी वह रस्म तो पूर्ण हो गयी थी । उसके तुरन्त बाद ही कुछ घटना क्रम ने भी विचित्र मोड़ खाया, क्योंकि उसके बाद मुझे आर्थिक कठिनाईयों तथा घरेलू झंझटों के कारण डीग छोड़नी पड़ी और बम्बई नगरी की शरण लेनी पड़ी, वहां छः महीने की नौकरी करने के पश्चात् जब वापिस डीग पहुँचा तो पता चला कि गुरूजी पैट्रोल पम्प छोड़कर हिमालय की तरफ चले गये हैं। तथा साधु बन गये हैं। वह दिन और आज का दिन इन पंक्तियों को लिखते समय तक मेरी उनसे मुलाकात नहीं हो सकी । समझने की बात यहाँ यह है कि उन तीन दिनों की भूख प्यास की तड़फन मैंने किस प्रकार सहन की, मुझमें कहाँ से इतनी शक्ति आ गई थी, तथा उसका मुझे क्या फल प्राप्त हुआ था, मेरे बुद्ध ताऊजी के अनुसार तो वह निष्कल ही रहा था, इन सब बातों को उस समय इस बारे में नहीं समझ सका था, लेकिन पन्द्रह साल के अन्तराल के का अर्थ सही मायनों में समझ में आने लगा है । समझ नहीं होने के कारण बाद अब उन सब बातों जिस प्रकार पतंग को सफलता पूर्वक उड़ाने के लिए पतंग और डोर के अलावा हवा के रूख का ज्ञान होना भी आवश्यक है उसी प्रकार भक्ति, ज्ञान और कर्म को ठीक-ठीक जानकारी में लिए बगैर हम निराश और निराश होते ही जावेंगे । हकीकत में अपनी साधना के बारे में हमें इन तमाम बातों को गुरू के For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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