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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्याय ७ गुरू वह है जो होश जगाए, जागृति लाए, मार्ग दिखाए आज से करीब पन्द्रह साल पहले, जब मेरी उम्र करीब अठारह उन्नीस साल की थी, हमारे घर में हिन्दू संस्कृति से सम्बन्धित बहुत सी साहित्यिक पुस्तकें बिका करती थीं । कई बार मुझे मेरी पसन्द की पुस्तकें भी उनमें मिल जाती थीं । जिनको मैं बड़े चाव से पढ़ा करता था, जिनमें कुछ भक्ति की कहानियाँ तथा किन्हीं अन्य में किसी महापुरुष के जीवन के संस्मरण या उनकी जीवनी हुआ करती थी। एक बार भगवान बुद्ध की सचित्र कहानियों का संग्रह जो कई शृंखलाओं में था, हमारे यहाँ विकने के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर से आया था। जिनमें भगवान बुद्ध को उनकी कठिन तपस्या के बाद सुजाता के द्वारा खीर का खिलाया जाना, भगवान बुद्ध का किसी भक्त के द्वारा लाए हुए आमों में से एक आम उसके ही सामने खाकर उस खाये हुये आम की गुठली पर अपनी जूठे हाथों को धोकर; गुठली में से उस भक्त के सामने ही पौधा निकाल देना आदि-आदि। और भी कितनी ही कहानियां उस संग्रह में थी। मेरे मन में कुछ तो पूर्व के संस्कार रहे होंगे, कुछ उन कहानियों का तत्कालिक प्रभाव था तथा साथ ही घर का वातावरण भी भक्तिमय था; इन सभी के मिश्रण से उस समय मेरा चित्त वैराग्य से भर उठा था। जिसके कारण मैंने अपने मन में यह निश्चय कर लिया था कि भगवान बुद्ध की तरह ही मैं भी लंघन करूंगा और जब तक गोपाल जी स्वयं आकर मुझे अपने हाथ से खाना नहीं खिलायेंगे, तब तक मैं खाना पीना ग्रहण नहीं करूंगा। बस उसी शाम से अन्य किसी को बिना कुछ कहे सुने मैंने अपनी मर्जी से खाना पीना छोड़ दिया। पहले दिन तो किसी ने कुछ नहीं कहा, पिताजी को भी मालुम नहीं पड़ा था, दूसरे दिन तो घर में सभी को For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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