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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० योग और साधना यही स्थिति उस साधक की होती है, जिसकी छोटी सी प्याली में प्रकृति की शक्तियाँ रूपी तमाम शराब भर गयी हो, वह छोटी सी प्याली अपना हिसाब कहाँ रख पायेगी। शुरू-शुरू में तो हिसाब बिगड़ेगा ही। लेकिन जैसे धीरे-धीरे मद्यखोर मद्य का अभ्यस्त हो जाता है, ठीक उसी प्रकार से लगातार अपनी साधना में होशपूर्वक एवं हिम्मतपूर्वक लीन रहने वाला साधक भी प्रार्थना की प्राप्ति के वेग को सहने का अभ्यस्त हो ही जाता है, और तब ही वह यथार्थ के धरातल पर धीरेधीरे उतरकर अपने आप ही संयमित होने लगता है। लेकिन वस्तुस्थिति को समझने में हमें कितना समय लगता है ? इस बात पर गौर करते समय पता चलता है कि जहाँ तक समय का सवाल है वह इस बात पर निर्भर करता है, कि हमारी चित्त की वृत्तियाँ किन गुणों के द्वारा प्रभावित हो रही हैं । __ अभी पिछले दिनों एक काली के भक्त की कथा पढ़ रहा था, वह भक्त बड़ा पैसे वाला था, हर हफ्ते देवी के मन्दिर में बकरे की बलि देता था, खूब जोर-जोर से माता की जय-जयकार करता था, माता पर शराब की ज्योति भी उसी की तरफ से जला करती थी। ऐसा पिछले कितने ही सालों से हो रहा था । लेकिन पता नहीं क्या बात हुई कि दो तीन साल तक भक्त का मन्दिर में आना नहीं हुआ। काफी समय पश्चात जब एक दिन वह आया तो पुजारी ने पूछा कि "क्या बात है भगत ? आजकल काली मैया की पूजा अर्चना सब छोड़ दी है ?" भक्त बोला, "नहीं, ऐसी बात नहीं है, असल बात तो यह है कि मुह के दाँत उखड़ गये हैं।" पुजारी ने फिर पूछा, “मुह के दाँत उखड़ जाने से माता की भक्ति का क्या सम्बन्ध ?" भक्त ने फिर से जबाव दिया, "हाँ, है न । मुंह में दाँत नहीं रहने से बकरे की बलि चढ़ाकर प्रसाद तो खा नहीं सकते हैं । फिर बताओ नाहक बकरे को क्यों कटवायें ?" देखा ?.........."भक्त की मानसिक वृत्तियों में तामसी गुणों का प्रभाव । वह कोई श्रद्धा से बलि नहीं देता था अथवा वह किसी प्रकार के भक्ति भाव से आविभूत होकर माता का भक्त नहीं था, वह तो उसके अन्दर जो तामसी पदार्थों के सेवन की वृत्ति थी, उसके कारण ही वह काली का भक्त था । यदि ऐसे व्यक्ति को कोई आध्यात्मिक शक्ति मिल जाय तो वह उसका क्या' उपयोग करेगा ? वह तो वही करेगा जो अभी तक उसके मन में चलता रहा है। ऐसे व्यक्ति से इस प्रकार की आशा कैसे रखी जा सकती है कि वह अपनी प्राप्त की For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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