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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ योग और साधना अध्यापन संचालन करता रहा है तो, बतायेगा कुछ और, परिणाम निकलेगा कुछ और । और तब हम अपने असफल होने की दशा में अपने मन पर असीमित बोझ बढ़ा लेते हैं । इसलिए यहाँ यह बात समझने की है कि यदि हमें अपने स्वयं के मन के ऊपर से लदे हुए बोझ को उतारकर चित्त को निर्मल करना है तो उसका एक मात्र उपाय हमारे पास जागृति ही है। उसी के द्वारा हमें बाद में यह जानकारी हासिल होती है कि हम किन अँगारों पर खड़े हैं अथवा नरक के कौन से कौने में हम पड़े हैं । इस संसार के दूसरे अन्य लोग कहाँ तक पहुंच गए हैं। जबकि हम अभी तक इस अंधेरी कीचड़ में ही फंसे पड़े हैं । असल बात तो यह है कि जागृति के द्वारा हमें अपने बारे में अपने सत्य का पता चलता है। संसार की प्रत्येक चीज जो हमें आज और अब चैतन्य दिखाई दे रही है अथवा गतिशील दिखाई दे रही है आने वाले कल में उसकी गति थम जाने वाली है । दूसरे शब्दों में आज जिसे हम चैतन्य समझ रहे हैं कल वही जड़ सिद्ध हो जाने वाला है । बच्चे लटू से खेलते समय उसके ऊपर डोरी लपेट कर ज़मीन पर फेंक कर उसे घुमाते हैं । काफी देर तक वह अपने आप डोरी से अलग रहकर भी घूमता रहता है । शुरू में घूमते हुये उस लकड़ी के लट्ट को देखकर आप भी आश्चर्यचकित हो जायेगें कि बिना किसी सहायता के यह अकेला अपने आप किस प्रकार से धूम रहा है । लेकिन थोड़ी देर के पश्चात ही वह गिर जाता है। ठीक इसी प्रकार हमारा शरीर ८० या १०० साल बाद गिर ही तो जाता है। इतने सालों तक हम अपनी दसों इन्द्रियों *की वासनाओं से शक्ति पाकर लटू की तरह घूमते ही तो रहे थे। लेकिन उस लटू की डोरी में ताकत देने वाले बालक के हाथों की तरह से ही हमारे इस शरीर को घुमाने वाली इन इन्द्रियों की भी ताकत देने वाली कोई चैतन्य शक्ति कहीं होनी ही चाहिए । अन्यथा इन इन्द्रियों को ताकत मिलेगी कहाँ से? आज तक हम सभी सांसारिक इन्द्रियगोचर वस्तुओं को अपने मस्तिष्क से जानते आये हैं। लेकिन मस्तिष्क की भी एक सीमा है। वह यह कि हमारा * दस इन्द्रियाँ-पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ एवं पाँच कर्म इन्द्रियाँ हैं । | पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ-आँख, कान, नाक, रसना (जीभ) तथा त्वचा (स्पर्श का अनुभव)। पाँच कर्म इन्द्रियां-हाथ, पैर, मुंह (बोलना), लिंग तथा गुदा । For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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