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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योग और साधना बनते हैं उन्हें हम सम्बन्ध नहीं कहते । क्योंकि सम्बन्ध में तो दो होते हैं जबकि भक्ति करते समय भक्त मिट जाता है और केवल वही बचता है जिसके प्रति वह भक्ति से समर्पित है इस प्रकार के सम्बन्धों को ही भक्ति के नाम से जानते हैं। इस उस परमात्मा के प्रति अपनी असीम श्रद्धा को लगाये हुये यदि कोई साधक इस संसार में अपने परिवार के साथ रहता है तो भी उसकी श्रद्धा में पारिवारिक उलझनों से उसकी भक्ति में कोई अन्तर नहीं पड़ता है। कुछ समय पूर्व मैंने एक बड़ी ही हृदय स्पर्शी कथा पड़ी थी एक सदगृहस्थ जिसके केवल एक ही लड़का था और जो अब युवा हो चला था। इस लड़के के अलावा अन्य कोई सन्तान उनके नहीं थी। अब तो दोनों पति-पत्नि भी बड़े हो चले थे। अकस्मात एक दिन उनका वह इकलौता लड़का, जो इनके बुढ़ापे की लाठी था चल बसा । उसकी पत्नी तो बहुत रोई, लेकिन वह बूढ़ा ऐसा लगा जैसे उस पर अपने एक मात्र लड़के की मृत्यु का कुछ भी असर नहीं हुआ था। जब उसकी पत्नी के आंसू कुछ थमे । तब उसने बड़ी हिम्मत करके अपने पति से कहा-"लगता है तुम्हें अपने बेटे की मृत्यु का दुःख नहीं हुआ, तुम्हारी आंख में एक भी आंतु मैंने आते हुये नहीं देखा।" वह आदमी बोला “जिसके बुढ़ापे का सहारा छिन जाये और उसे दुख न हो ऐसा तो असम्भव है, एक बार तो मेरे मन में यह भी विचार आया था, कि अब इस दुनिया में मेरे जीने के लिए क्या रखा है। इसलिये क्यों न मैं अपनी आत्महत्या कर लूं । लेकिन तभी परमात्मा की तरफ से एक विचार मेरे मस्तिक में आया, कि जब पहले शुरू में वह बेटा मेरे नहीं था तब भी तो मैं जिन्दा था बीच के दिनों में वह हमारे साथ रहा, अब आगे भी नहीं रहेगा। इसलिए अब इसमें आत्म हत्या की जरूरत क्यों आ पड़ी। बस इतनी सी बात ने मुझे उसी समय सवंत कर दिया था।" यह ठीक है यदि हम फूलों के पास रहेंगे तो हमें खुशबू का मजा मिलेगा ही, लेकिन इस संसार को देखते हुये ऐसा हमेशा ही तो रहने वाला नहीं है । या तो हमें फूलों को छोड़ना पड़ेगा अन्यथा फूल हमें मुरझाकर छोड़ जायेगें। इसी प्रकार के मिलन और विछोह का नाम संसार है। ये सब अनुभव हमें अपने जीवन में करने ही पड़ते हैं। ऐसा प्रत्येक फूल जो हमें हमारे मन को आकर्षक या सुन्दर लगता है उसे ही तो हम अपने कोट के कालर पर टाँके हुये सदा नहीं रख सकते । इन अनु For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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