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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साकार हमारा चिन्तन-निराकार हमारा मार्ग २३३ इस संसार में आकर जीव जड़ से अपनी यात्रा शुरू करता है और चैतन्य पर आकर उसकी यात्रा समाप्त हो जाती है। शुरू में हमारे पास संस्कार के खाते में भी केवल जन्म लेने की लालसा ही थी, जिसकी वजह से हम पहले पहाड़ बने । फिर इस संसार में आकर चैतन्य होने की या क्रियाशील होने की हम में कामना जगी, इसी कामना ने कर्म बनकर फिर आगे की शृंखला में कड़ी जोड़ी, पहले वह जरा ज्यादा जड़ था अब वह थोड़ा कम जड़ बना पेड़ बनकर । फिर उसके बाद उसने चैतन्य की ओर और प्रगति की वह ऐसा पेड़ बना जो साल में दो चार फुट इधर-उधर सरक कर यात्रा कर लेता है (इस प्रकार के पेड़ों की जानकारी अब आम है) उसके बाद वह मगरमच्छ के प्रकार का जन्तु बना होगा। जन्तुओं के बाद जानवर बना जो उसके मुकाबले ज्यादा चैतन्य था। जानवरों के बाद वह पक्षी बना और फिर तो उसके कर्मों की श्रृंखला बनती गयी पिछले कुछ मिटते गये, नये कुछ बनते गये । आत्मा के जन्म पर जन्म होते गये और वह बढ़ती गयी अपने पथ पर । हमारे यहाँ कहावत है, मनुष्य का शरीर मिलता है चौरासी लाख योनियों को भोगकर । इतने गहरे में जाकर ही हम इस बात को समझ सकते हैं । इससे पहले आप किस तरह समझेंगे ? बहुत से भिन्न-भिन्न अवस्थाओं व मानसिकताओं वाले मनुष्यों को देखकर इस कथन की पुष्टि भी होती है। प्रकृति में जितने भी तरह के पशु-पक्षी, जानवर, जीव, जन्तु शाकाहारी अथवा मांसाहारी पाये जाते हैं । उनके स्वभाव की खास-खास बातें इस मानव में भी पायी जाती हैं । थोड़े से बारीक अध्ययन के बाद हम इसे समझ भी सकते हैं। कुछ मोटी बातें आपके समक्ष रखने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन इन को समझते समय अगर आप प्रमाण मांगने लगेंगे तो मैं असफल ही रहूँगा। क्योंकि इस प्रकार की बातों को एक ही मानव में सिद्ध करना असम्भव ही होगा। किसी एक का कोई एक अनुभव अभी ताजा है और जबकि किसी दूसरे का कोई दूसरा । इसको समझते हुये यह भूल नहीं करनी है कि मानव शरीर धारण करने से पहले एक क्रमबद्ध गिनती है । जिसमें पहले हाथी बनेगा, उसके बाद बन्दर फिर आदमी । नहीं, अगर इसको इस तरह से हमने समझा तो समझो हमसे चूक हो गयी । एक जीव के मरते समय उसके पिछले तमाम जन्मों के अनुभवों के बाद उसकी जो आकाँक्षा बन गयी थी तथा काल और परिस्थितियों के अनुसार उसने अपने अगले जन्म के लिये वही योनि अपनी इच्छा शक्ति के द्वारा प्राप्त की इसलिये प्रत्येक स्त्री-पुरुष का एक जैसा स्वभाव नहीं हो सकता । बहुत से F For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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