SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___मृत्यु को स्वीकार करना ही सत्य को स्वीकार करना २१ उसने गंगा स्नान के कार्यक्रम को अपनी मंजूरी दे दी । वहाँ जाकर जब पण्डित जी ने देखा कि गंगा की धारा में जितना इन्तजाम राजा ने पूर्व में करने को कहा था उससे भी दस गुना अधिक है। कम से कम एक हजार व्यक्ति तो एक दूसरे का हाथ पकड़ कर खड़े हैं । उनके बाद में बड़ी जाली का घेरा, फिर बिल्कुल बारीक जाली का घेरा था जिसमें जीव-जन्तु तो क्या गंगाजल भी छन-छन कर आ रहा था और तब उस घेरे में केवल घुटने-घुटने पानी के अन्दर राजा और राजकुमार खड़े होकर पण्डित जी को बुला रहे थे । पण्डित जी स्नान को सहर्ष तैयार हो गये। उन्होंने भी सोचा, एक डुबकी ही तो लगानी है जैसे ही पण्डित जी ने राजकुमार का हाथ पकड़ कर गंगा में डुबकी लगाई, तो वे क्या देखते हैं कि राजा तो यमराज के रुप में बदल गया है और राजकुमार मगरमच्छ बन गया है जिसने उनको आधा अपने मुंह में ले रक्खा है तथा वह राजा रूपी यमराज खड़ा २ हंस रहा है । अन्य किसी का कहीं भी दूर-दूर तक पता नहीं है। यहां इस कथा से मेरा केवल इतना ही तात्पर्य है, कि हमें यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी है कि हम इस दुनियां में जन्म लेकर, मृत्यु से अपनी बुद्धि के किसी भी क्रिया कलाप के द्वारा बच नहीं सकते । उल्टे हम स्वयं ही उस पण्डित को तरह से परेशानियां और बढ़ा लेते हैं। यही इतनी सी बात हमारे जीवन की प्रत्येक अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों पर ज्यों की त्यों खरी उतरती है । तो मैंने दो प्रकार की मानसिकताओं के बारे में यहां लिखा है । पहली तो वह पशु तुल्य स्थिति है, जबकि दूसरी पण्डित जैसे ज्ञानी की है । लेकिन मेरे देखते यह दोनों ही स्थितियां दुखदाई है। क्योंकि पहली स्थिति में तो हम गहन अंधकार में होते हैं, जहां अभी ज्ञान के अंकुर फूटे नहीं हैं, जबकि दूसरी स्थिति में हमने इस गहन अंधकार में अपने विवेक से प्रकाश की किरण खोज निकाली है । लेकिन इस प्रकाश की किरण को देखते ही तथा उसके स्वरुप को समझे बिना हम उस प्रकाश के साथ आने वाले ताप से डर गये हैं। इसी बात को जरासा पलट कर देखने की चेष्टा इस तरह से भी करें, जैसे दो भूखे व्यक्ति हमारे सामने मौजूद हैं। इनमें से एक व्यक्ति के पास एक रुपये का सिक्का है, जबकि दूसरे के पास वह भी नहीं है, जिसके पास कुछ नहीं है वह तो भूख से व्याकुल है ही, लेकिन जिसके पास वह रुपया है वह भी भूख से व्याकुल ही है । तथा साथ में व्यथित भी है, कि मेरे पास तो For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy