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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २.४ योग और साधना एक बात और मुझे आश्चर्यचकित कर रही थी कि इतना शोर हुआ था मेरे कानों में लेकिन कमरे के बाहर घर के किसी भी सदस्य को इसकी खबर नहीं थी, मैंने इसका कारण भी वही जाना, ये सारा का सारा शोर, अनुभूतियाँ केवल मैंने ही अनुभव की थीं, इनका किसी भी अन्य व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं था भले ही वह मेरे बगल में ही क्यों न लेटा होता, उसे इसका कुछ भी पता नहीं चलता। इस अनुभव को मैं क्या कोई भी करता, जीवन भर कैसे भूल सकता था और चूकि मेरे जहन में सैद्धान्तिक रूप से सारा कुछ पहले से था इसलिये जब से यह घटना घटी तब मेरे लिए ऐसी कोई शंका या कारण नहीं बचा था जिसकी वजह से मैं अपनी कुण्डलिनी के जागरण को झुठला सकता। कमरे में से निकलकर सबसे पहले घड़ी पर नजर डाली आठ बजकर पांच मिनट हुये थे । इसका मतलब, आज मैं पूरे दो घण्टे बाद ही कमरे से बाहर निकला था । मैंने जल्दी ही अपने कपड़े पहने मेरा निवास जो कि भरतपुर किले के अन्दर है, वहाँ से चलकर किले में ही रहने वाले श्री श्यामाशरण जी शास्त्री के पास पहुँचा, उनसे मैंने अपने आठ बजे के समय के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि उस समय मेरे ऊपर मारकेस लगा था। मैंने जब इसको और खुलासा करने को कहा तो बोले कि उस समय दुर्घटना में प्राणों का भय, नुकसान, मृत्यु तुल्य कष्ट होने का योग बनता है। बाद में हरदेव जी के मन्दिर के श्री जुगल किशोर गोस्वामी जी से भी बातें की तो उन्होंने भी वही बातें बतलायीं । मैंने उनसे उस समय के मेरे से सम्बन्धित ग्रहों व नक्षत्रों के हिसाब से समयचक्र बनाकर देने को कहा । जो आज भी मेरे पास मौजूद है । यह तो मुझे भी लग रहा था कि मैं मौत के मुह से ही वापिस उस समय आया था लेकिन किसने सहायता की मुझे वापिस लाने में ? पण्डितों के अनुसार तो मेरे लिए ग्रह स्थिति तुरन्त कुछ समय पश्चात् सहायक हुये थे। ___मेरे मस्तिष्क ने बाद में यह निष्कर्ष निकाला कि मेरी मृत्यु होनी होती तो वह आज ही इस प्रथम अनुभव के दौरान ही हो जाती और आज अब जबकि उस अनुभव को मेरे शरीर और मन ने होशपूर्वक झेल लिया है तब फिर भविष्य के बारे में क्या चिन्ता करनी। For Private And Personal Use Only
SR No.020951
Book TitleYog aur Sadhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamdev Khandelval
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1986
Total Pages245
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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